नैर्सगिक सौन्दर्य और श्रृद्धा का समन्वय नीलकण्ठ महादेव

- दिलीप आचार्य ‘सोमेश्वर

वनाँचल की पर्वतीय उपत्यकाएँ, कल-कल करती सरिताओं के तट, कन्दराओं/गुफाओं की शीतल छाँव और नैर्सगिक सौन्दर्य भरी वागड़ की पुण्य धरा शिव को रास आ गई है। नीलकण्ठ धाम भी इनमें से एक है जहाँ की प्राकृतिक सुषमा हर किसी को सुकून देती है वहीं शिवालय श्रृद्धा का ज्वार उमड़ता है।

राजस्थान के दक्षिणी जिले बाँसवाड़ा के दक्षिण-पश्चिम में 12 कि.मी. दूर दोहद राजमार्ग पर बोरखेड़ी गाँव में प्राकृतिक हरीतिमा से आच्छादित झुरमुटों के बीच स्थित है ‘नीलकण्ठ महादेव’ का अति प्राचीन मंदिर, जो सदियों से साधु-संन्यासियों, योगी-यतियों एवं शिव साधकों की साधना स्थली रहा है।

सदियों से रहा है शैव उपासना का धाम

मंदिर के गर्भगृह में नीले रंग का विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठित है, जिसकी जलाधारी पर संवत 1375 स्पष्ट खुदा हुआ है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण या प्रथम जीर्णोद्धार ई.सन 1318 के आस-पास हुआ होगा।

मंदिर का सभा मण्डप विशाल है जिसमें श्वेत पाषाण की नन्दी की प्रतिमा लगी हुई है। मंदिर के चारों तरफ मजबूत परकोटा बना हुआ है। मंदिर के सामने एक विशाल दरवाजा बना है जिसके पत्थरों पर लिखे लेखों से स्पष्ट होता है कि तत्कालीन बाँसवाड़ा रियासत के महारावल जगमालसिंह की रानी लाछबाई द्वारा उक्त मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।

गौसेवा का तीर्थ रहा है यह

जनश्रुतियों के अनुसार इस अरण्य में ‘पोमाडेगी‘ नामक संत गोपालक के रूप में गौसेवा करते थे। उनकी गायें स्वतंत्र व स्वच्छन्द रुप से जंगल में विचरण करती थी। उनके जाने के बाद पशुधन बिखर गया। चारों तरफ गाँवों में इन गायों का डर छाया हुआ था क्योंकि रात्रि में खेतों में घुसकर फसलें नष्ट कर दिया करती थी। बाद में इनका वंश समाप्त हो गया। कालान्तर में चन्द्रवीर गढ़ बनने के बाद महाराज कुँवर भवानी प्रतापसिंह ने अपनी भूमि का सीमांकन करते हुए उक्त मंदिर को जो उनकी निजी भूमि में स्थित था जन-जन को सर्मपित कर दिया।

धार्मिक परिवेश और नैसर्गिक सौन्दर्य का संगम

मंदिर के पूर्व में इस क्षेत्र का अन्य ऎतिहासिक सिद्धस्थल ‘विट्ठलदेव‘ है जो संगम स्थल है व इसके उत्तर में देवी ‘त्रिपुरा सुन्दरी‘का प्रसिद्ध शक्तिपीठ अवस्थित है। मंदिर के ठीक सामने‘कुंभ दर्रा ‘ का विशाल नाला है जिसमें अथाह जल राशि प्रत्येक समय अबाध गति से बहती रही है जिसके कारण यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु शान्त और मनोरम वातावरण में घण्टों खो जाता है।

गौमुख की गाथा भी कम नहीं

मंदिर के दांयी ओर हनुमान मंदिर है तथा बांयी ओर मंदिरनुमा भग्नावशेष व गौमुख-कुण्ड है। अनुमान है कि पहले यहीं पर प्राचीन मंदिर था जहाँ चट्टानों से रिसता जल गोमुख से निकल कर सीधे शिवलिंग पर गिरता था। नाले के दूसरी तरफ तत्कालीन बाँसवाड़ा रियासत के महाराजा महारावल पृथ्वीसिंह द्वारा बनाया गया भव्य ‘सरिता‘महल है।

दिव्य औषधीय पादपों की भरमार

मंदिर के चारों तरफ छाये विशाल वृ़क्षों की हरियाली से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि विगत में यहाँ घना जंगल रहा होगा। यहाँ बरगद, पीपल, जामुन, सागवान एवं बिल्व वृ़क्षों के अलावा छोटे-बड़े अनेक प्रजाति के पौधे उपलब्ध हैं। आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार यह क्षेत्र‘वरदान ‘ है जहाँ जड़ी-बूटियों की भरमार है। पक्षियों का मधुर कलरव जहाँ अत्यन्त कर्णप्रिय लगता है वहीं हर मौसम में पिकनिक मनाने आते रहे श्रद्धालुओं द्वारा बनाये दाल-बाटी, चूरमा व लड्डुओं की स्निग्ध खूशबू वातावरण को और भी मनमोहक बना देती है।

शिवभक्तोें की अगाध आस्था लहराती है यहाँ

सप्ताह के प्रत्येक सोमवार को यहाँ भक्तों का ताँता लगा रहता है वहीं महाशिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला भरता है। श्रावण मास में यहाँ चहल-पहल अपनी चरम सीमा पर होती है। इस माह में समीपवर्ती गाँवों से काँवड़िये प्रसिद्ध घोटिया आम्बा तीर्थ से जल भर 25 कि.मी. की पैदल यात्रा करते हुए यहाँ पहुँचते हैं एवं शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के नियमित रखरखाव के लिये स्वयंसेवी संस्थाओं का योगदान प्रशंसनीय है। दो साल पूर्वसमाधिस्थ हुए बाबा शिवरतन भारती ने25 वर्ष पहले मंगलेश्वर से यहाँ आकर अपनी भक्ति व मेहनत से मंदिर क्षेत्र को सँवारा।

विकास समिति के अनथक प्रयास रंग ला रहे

वर्तमान में यहाँ धूनी रमाए महंत के अनुसार समीपवर्ती गाँव छींच के समाजसेवी स्व. शान्तिकुमार आचार्य जो कि सरिता निवास के पुरोहित भी रहे हैं, के नेतृत्व में सन 1992 में नीलकण्ठ महादेव विकास समिति का गठन किया गया जिसमें आस-पास के दर्जनों गाँवों के प्रतिनिधि शामिल किये गये।

हर प्रदोष को गूंजती हैं रूद्रार्चन ऋचाएं

इस संगठन की प्रेरणा से क्षेत्र के मार्बल व्यवसायियों द्वारा सभामण्डप में मार्बल पत्थर, परिसर में जल सुविधा हेतु हेण्डपम्प आदि लगवाये गये। बाद में यहाँ विद्युत सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इसके अलावा यहाँ छींच गुरुआश्रम के महन्त घनश्यामदासजी महाराज के संरक्षण में छींच के युवाओं का ‘नीलकण्ठ प्रदोष मण्डल‘ है जो प्रत्येक प्रदोष तिथि को अपनी सेवाएँ लगातार मंदिर में दे रहा है एवं मंदिर में हर साल रंगरोगन भी करवाता है।

पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं से भरपूर

यद्यपि स्थानीय विधायक व नेताओं द्वारा मंदिर परिसर में कमरों का निर्माण करवाया गया है परन्तु मंदिर तक पहुँचने के लिये पक्की सड़क का नहीं होना श्रद्धालुओं को खटकता है। वर्षा के दिनों में मंदिर तक पहुँचना अत्यन्त मुश्किलों भरा ही हो जाता है। मंदिर की ऎतिहासिकता को देखते हुए इसे पर्यटन की दृष्टि से उभारे जाने के प्रयास किए जाएं तो नीलकण्ठ धाम राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के शिव तीर्थों में शुमार हो सकता है क्योंकि प्रकृति के बीच अवस्थित यह मन्दिर पर्यटन की सभी संभावनाओं से भरा हुआ है।

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