सहरा के अंधरे में शमा का मनभावन उजियारा
बाड़मेर 
भारत का पश्चिमी इलाका एक धरती को दो रंगों में तब्दील करने वाली सरहद की कंटीली तार के साथ साथ अपनी किस्मत में लिखे अभावों के चलते भी देश भर में जाना जाता है . दूर दूर तक फेले रेत के टीलो के बिच जिन्दगी चल तो बरसो से रही है लेकिन साथ नजर नही आता उमंग देने वाली तालीम और मूलभत सुविधाओ का . बाड़मेर जहा दूर दूर तक कुदरत की बेरुखी अलावा कुछ भी दीखता , सूरज की सीधी करीने जितनी तीखी यहा पड़ती है उतना ही तालीम की कमी की तपन में जल रहा है इलाका। साक्षरता का पताका बुलंद करती सरकार के सामने यह इलाका एस है जहां आज भी अल्पसंख्यक वर्ग के पचास फीसदी से ज्यादा बच्चे सरस्वती मंदिर की चोखट तक नहीं पहुंचते . कुछ दिनी तालीम से रूबरू होते हे तो दुनियावी तालीम उनसे कोसो दूर रह जाती है . ऐसे माहोल में बदलाव उम्मीद कोई केसे करे . वह भी अल्पसंख्यक वर्ग में बालिका शिक्षा को लेकर . जहा हर हाथ में जख्म देने वाला चाकू और कुछ हाथो में नमक हो ऐसे में कैसे होगी सारी उम्मीदों को सच कर देने की ख्वाहिस और क्या होगी कोशिशे इन सवालों को साकार करने के लिए चोहटन के एक छोटे से गाँव भोजारिया से उम्मीदों की रौशनी बन कर आई एक बेटी . पंचायती राज के चुनावो में विजयी परचम लहराया और चोहटन की प्रधान बनी शम्मा खान। 
जोधपुर जय नारायण व्यास विश्व विधालय में साल 2007  में वकालत की तालीम पूरा कर . चॉहतन अपने ससुराल आई शम्मा के लिए यह इलाका न्य नही था लेकिन इलाके में बदलते वक्त के बावजूद बदलाव के नाम पर मामूली दिखने वाला परिवर्तन इन्हें अखरने लगा .एक बाड़मेर के छोटे से गाव की बेटी होने के बावजूद उच्ची पढाई के चलते उची समझ पा लेने की बात हर बेटी में हो एस ही सपना संजोया . देश भर के समन्दर का राज्य कहे जाने वाले केरल में आयोजित यूथ स्टडी टूर के दोरान केरल में बेटियों की सो फीसदी तालीम देखने के बात यह मानस मन में हिलोरे मरने लगा और अपने चोहत्न में वापस लोटने पर इलाके में बदलाव की एक सोंधी महक को खड़ा करने का मादा इस सहरा में खड़ा कर दिया है .अपने साथ के जन्पर्तिनिधियो को अपनी बात को बेहद सलीके से समझाया और गावो में बेटी की पढाई के लिए माहोल तेयार करने में जुट गई गाव की ही बेटी . कहने के लिए काम आसन हो सकता था लेकिन बरसो तक जो इलाका पढाई के नाम से दूर भागता था वह बेटी को घर से बहर लेन के लिए पसीने छूटने लाजमी थे, विरोध हुआ कुछ मोल्वियो ने तो फतवे तक जारी करने का मानस बना लिया था लेकिन यह लो अब मशाल बनने को आमद हो चुकी थी . गाव गाव जाकर पुरशो के बजाये महिलाओ को समझाया और बेतिलो को अनपढ़ता के अँधेरे से दूर करने का पाठ पढाया . अपने इस काम के साथ साथ अपनी पंचायत समिति का काम भी बखुदी किया और उसी की बदोलत साल 2012 में राष्ट्रिय पंचायती राज दिवश के मोके पर देश की राजधानी दिल्ली में सम्मान पाया और इसी साल राजस्थान की राजधानी जयपुर में राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजी गई . देश के पंचायती राज में उम्दा करने वाले दल को चीन की यात्रा पर भेजा गया तो उस सूचि में भी शम्मा खान का नाम शामिल था .शम्मा खान के मुताबित किसी भी इलाके में केसे भी बदलाव के लिए आपका दिल से काम करना जरुरी है मुश्किलें हर काम में आती है इसे में मुश्किलों में थक कर बेठ जाना किसी भी मायने में समझदारी नही है . अगर एक मर्तबा असफलता हासिल हो जाती है तो दूसरी बार फिर प्रयास करना ही समझदारी है . शम्मा अपने क्षेत्र में पहुंचती हैं तो लोग उसके सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं और शम्मा जाते जाते नसीहत देती हैं कि लडकियों को पढाना मत भूलना . शम्मा के प्रयाश ही है की आज चोहटन इलाके में अल्पसंख्यको की बेटियों के तालीम के सूचकांक ने उच्ची छलांग लगे है . कल तक जहा बेतिया घर में चूल्हे की जद में थी आज बाड़मेर शहर में स्थित बालिका आवशीय मदरसे में दो सो से अधिक बालिकाए तालीम ले रही है . आज गाव गाव में महिलाये पढाई और शम्मा के बारे में बाते करती है . कल के अंधियारी हकीकत और आज की सुरत में दिन रात का अंतर है . कल तक झा बिना तालीम का अँधियारा था आज वह रौशनी है तालीम की और इन सभी के पीछे अगर किसी का बड़ा हाथ है तो वह है शम्मा खान का . महिला दिवश के इस मोके पर राजस्थान खोज खबर शम्मा खान के जज्बे को सलाम करता है . 

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