शहादत का पर्व मुहर्रम
अनिता महेचा
जैसलमेर
भारत में हिन्दुओं के साथ ही जैन, बौद्ध, सिख, मुसलमान भी निवास करते हैं। हिन्दुओं की तरह ही उनके भी अनेक धार्मिक त्योहार तथा पर्व होते है, जो सारे भारत में मनाये जाते हैं।
मुसलमानों का एक पर्व मुहर्रम है। मुहर्रम त्योहार की भांति नहीं मनाया जाता है, बल्कि यह शहादत दिवस है। इसे मातम के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन हजरत मोहम्मद के पोते ईमाम हुसैन ने अपना बलिदान दिया था। उनके बलिदान की याद में मुसलमान इस्लामी वर्ष के प्रथम मास की प्रथम तिथि से दसवीं तिथि तक मुहर्रम मनाते हैं।
इमाम हुसैन मुसलमानों के चौथे पैगम्बर हजरत अली के पुत्रा थे। हजरत अली के बाद मक्का में उनको खलीफा माना जाता था। मुसलमानों में ही एक शख्स याजिद थे। वे इमाम हुसैन को अपना शागिर्द बनाना चाहते थे। परन्तु इमाम हुसैन ने उनका शागिर्द बनना स्वीकार नहीं किया, जिससे उन दोनों के बीच शत्राुता पैदा हो गई। अवसर मिलने पर याजिद ने स्वयं को अरब के एक हिस्से का खलीफा घोषित कर दिया।

मुहर्रम की तीसरी तिथि को पानी बंद कर दिया। फिर कर्बला के मैदान में याजिद और इमाम हुसैन के दलों के बीच जमकर घमासान जंग हुई। हुसैन को नमाज अदा करते समय धोखे से निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया गया। इस प्रकार वे शहीद हो गये। उनकी इस शहादत की स्मृति में आज भी मुहर्रम मनाया जाता है। मोहर्रम के चालीसवें दिन ॔चेहल्लुम॔ मनाया जाता है। यह एक प्रकार का श्राद्धकर्म ही है। तभी से ॔चेहल्लुम॔ मनाये जाने की परम्परा प्रचलित हुई है।
मुहर्रम मनाने के लिये मुसलमान मुहर्रम के कई दिनों पूर्व से ही तैयारी करने लगते हैं। इस दिन को मुसलमानों के दो वर्ग शिया और सुन्नी पृथकपृथक ंग से मनाते हैं।
सुन्नी मुसलमान अपने घरों में बैठकर इसे शोक रूप में मनाते हैं। वे ईस्लामी माह की प्रथम तिथि से लेकर चालीसवें दिन ॔चेहल्लुम॔ तक इसको मनाते हैं। सिया मुसलमान इस अवसर पर ताजिए बनाते हैं। ताजियों का जुलूस के रूप में ॔हाय हुसैन, हाय हुसैन॔ कहते हुए तथा छाती पीटते हुए कर्बला तक ले जाया जाता है। कर्बला में उनको विधिविधान से दफनाया जाता है।
भारतवर्ष में इस परम्परा को तैमुर लंग ने प्रारम्भ किया था। इस दिवस घर आकर लोग अपना उपवास खोलते हैं और अपनी हैसियतनुसार खैरात बाँटते हैं।
मुहर्रम मनाने वाले मुसलमानों के लिए यह दिन शहादत के साथ ही भावनात्मक एकता के रूप में आता है। यह दिन याद दिलाता है कि संकटों और मुश्किलों के समय भी व्यक्ति को अपने आदर्शसिद्घान्त कभी भी त्यागने नहीं चाहिएं बल्कि उन पर स्थिर भाव से अमल करते रहना चाहिए, इसी में मानवता का कल्याण निहित है।
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