यहां नौ दिन तक पानी से जली ज्योति, आज भी होते हैं माता के चमत्कार!
छोटीसादड़ी/उदयपुर.छोटीसादड़ी की स्थापना के साथ ही नगर में मां अन्नपूर्णा मंदिर की स्थापना हुई थी। मान्यता है कि यहां चमत्कारी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा के दर्शन करने से मनोकामना तो पूर्ण होती ही है, वहीं मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन बड़ वृक्ष की परिक्रमा करने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से भी निजात मिलती है। मंदिर में मां अन्नपूर्णा के अलावा मां कालिका व अन्य कई देवी प्रतिमाएं भी बिराजित हैं।
 मंदिर के पुजारी अरविंद दास साधु के अनुसार कई वर्षों पहले नगर में एक बीमारी ने सभी को जकड़ लिया था। बीमारी के डर व उससे बचने के लिए यहां के निवासी घर छोड़कर खेत, कुएं या अन्य जगहों पर निवास करने लगे थे। इसके बाद से कोई वापस नगर में आने को तैयार नहीं था।
मंदिर के पुजारी अरविंद दास साधु के अनुसार कई वर्षों पहले नगर में एक बीमारी ने सभी को जकड़ लिया था। बीमारी के डर व उससे बचने के लिए यहां के निवासी घर छोड़कर खेत, कुएं या अन्य जगहों पर निवास करने लगे थे। इसके बाद से कोई वापस नगर में आने को तैयार नहीं था।
तब शारदीय नवरात्रा में मंदिर में मां अन्नपूर्णा ने एक भोपे के शरीर में प्रवेश कर बीमारी से निजात दिलाने के लिए मंदिर के पास लाला जी की बगीची स्थित प्राचीन बावड़ी के पानी से सात बार लोटे को मांज कर उसमें पानी भरकर जोत में डालने को कहा। इस तरह नौ दिन तक यहां पानी की जोत जलती रही। इसके बाद बीमारी का प्रकोप धीरे-धीरे खत्म हो गया।
फिर अष्टमी हवन व नवमी के दिन नवरात्रा का विसर्जन भक्तों द्वारा किया गया। बीमारी खत्म होने के बाद वापस लोग अपने-अपने घर में लौट आए। यहां चैत्र व कार्तिक दोनों नवरात्रियों में अखंड जोत जलती है। दोनों समय महाआरती होती है। मंदिर के पुजारी नवरात्रि पर नौ दिन तक अन्न का त्याग कर पूजा-अर्चना करते हैं।
इस दहलीज से खाली हाथ नहीं लौटता कोई
पीपली आचार्यान.गांव की पश्चिम दिशा में मगरी पर भरका देवी माता का मंदिर है। यह मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है। भोपाजी जीतू भील ने बताया कि गांव के माफीदार क्षेमाचार्य के चार पुत्र थे। ये चारों पुत्र एक बार भीलवाड़ा में भरक गांव से होकर निकल रहे थे।भूख लगने पर पहाड़ पर चढ़कर खाने का निर्णय किया। वे पहाड़ पर चढ़े तो वहां पर विराजित माता के दर्शन कर इसे अपने गांव पीपली आचार्यान ले जाने का मानस बनाया। इस दौरान वहां चार महिलाएं आई।इनमें से एक महिला ने उनके साथ चलने की मंशा बनाई। चारों भाइयों के हां कहने पर यह महिला गांव तक उनके साथ आई और इसके बाद अदृश्य हो गई। एक भाई के स्वप्न में वृत्तांत सुनाया।
इसके बाद इन चारों पुत्रों ने गांव में मगरी पर भरका देवी की प्रतिमा स्थापित की। इस शक्तिपीठ पर चित्तौड़, भीलवाड़ा, उदयपुर, नाथद्वारा, अहमदाबाद, तक के श्रद्धालु माता के दरबार में आते हैं।
इस मन्दिर में गर्मी मे भी रहता है ठडंक सा अहसास
कुंभलगढ़. क्षेत्र के रिछेड़ गांव में चारभुजा केलवाड़ा मार्ग ऊंची पहाड़ियों के बीच आमज माता जी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की नींव संवत 777 के माघ 2 को रिछाजी दसाणा नाम के व्यक्ति ने रखी थी। मान्यता है कि रिछाजी दसाणा के समक्ष आमज मां प्रकट हुई और मंदिर तैयार करने की बात कही।
रिछाजी ने कहा कि मेरे पास कोई संपत्ति नहीं  है तो मां ने वरदान दिया कि तू आगे चल पीछे मुड़ कर मत देखना और जहां रूकेगा वहां तेरे नाम का गांव बसा देना। यहीं से अचल संपत्ति मिलेगी। तब रिछाजी वहां से रवाना हुए और आगे बढ़े डेढ़ किमी चलने के बाद उन्होंने पीछे मुड कर देखा तो पीछे भैंसें दिखीं।
रिछाजी ने उन भेंसों को वहीं रोककर एक नोहरा बनाया व इसी के साथ एक रिछेड़ गांव बस गया। बाद में 778 इस्वी ज्येष्ठ सुदी नवमी को मंदिर का निर्माण किया। इस मन्दिर में गर्मी मे भी ठडंक सा अहसास रहता है। बारह महीने यहां कुण्ड से निरन्तर जलधारा बहती रहती है।
 
आमज माता रिछाजी दसाणा (तंवर) जागीरदार थे
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