मानसून सत्र के हंगामेदार रहने के आसार
नई दिल्ली। आठ अगस्त से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के हंगामेदार रहने के आसार हैं। भाजपा समेत पूरा विपक्ष जहां सरकार को घेरने की कोशिश करेगा वहीं यूपीए सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान कर विपक्षी हमलों को नाकाम करने की कोशिश करेगी। मानसून सत्र करीब एक महीने तक चलेगा।
इन मुद्दों पर घेरेगा विपक्ष
बढ़ती महंगाई
मारूति प्लांट में हिंसा
सूखे और बाढ़ के हालात
तमिलनाडु में हुई ट्रेन दुर्घटना
दो बार पॉवरग्रिड का फेल होना
पुणे में इसी सप्ताह हुए बम धमाकों
अमरनाथ यात्रा में तीर्थ यात्रियों की मौत
इन मुद्दों पर भी घिरेगी सरकार
विपक्षी पार्टियां पदोन्नतियों में आरक्षण तथा देश के विभिन्न भागों में माओवादी हिंसा जैसे कई अन्य मुद्दे भी उठाएंगी। संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल भले कह रहे हों कि सरकार विपक्ष के सभी सरोकारों पर चर्चा के लिए तैयार है लेकिन प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद पिछले करीब एक दशक में पहली बार उनके बिना संसद के सत्र का सामना करने जा रही सरकार का संकट समझना मुश्किल नहीं है।
दूसरी पीढी के स्पेक्ट्रम आवंटन में राजकोष को लाखों करोड़ रूपए का चूना लगाने के मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के साथ संलिप्तता के आरोपों में पिछले कुछ सत्रों में विपक्ष खासकर भाजपानीत राजग के हमलों तथा बायकाट तक का निशाना रहे पी. चिदम्बरम की वित्त मंत्रालय में वापसी भी सरकार के लिए संकट का सबब बन सकती है और मुश्किल यह भी कि विपक्ष के तीखे हमलों के सामने उसे लोकसभा में सदन के नेता के तौर पर अपेक्षाकृत एक शांत एवं अंतर्मुख नेता सुशील कुमार शिंदे का ही आसरा होगा।
31 विधेयक होंगे पेश
वैसे तो मानसून सत्र की कार्यसूची को अंतिम रूप संभवत: सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में दिया जाएगा लेकिन सात सितंबर तक चलने वाले इस सत्र में कुल 31 विधेयक पेश किए जाने की संभावना है। इनमें भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने वाले सामाजिक कर्मियों की सुरक्षा का व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन तथा विधायिकयों एवं संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव करने वाले गैर-आर्थिक विधेयक भी शामिल है। दो चरणों में 12 मार्च से 22 मार्च तक संपन्न पिछले बजट सत्र में सरकार ने 21 विधेयक पेश किए थे। ाम बजट तथा रेल बजट से संबंधित विधेयकों सहित 20 से अधिक विधेयक पारित किए गए थे।
ये है चुनौतियां
व्यापार एवं निवेश का उत्साहजनक माहौल बनाने के लिए वायदा कारोबार आयोग,एफएमसी को वित्तीय स्वायत्ता एवं अधिकार देने के प्रावधान वाला वायदा अनुबंध नियम कानून संशोधन,निजी बैंकों के मतदान अधिकार की सीमा मौजूदा 10 प्रतिशत से बढाकर 26 प्रतिशत करने के प्रावधान वाला बैंकिंग कानून संशोधन तथा उद्योग व्यापार का माहौल बदलने के लिए करीब आधी सदी पुराने कंपनी कानून के स्थान पर नया कंपनी विधेयक जैसे कई विधेयक तथा पेंशनकोष नियमन एवं विकास विधेयक को सत्र की कार्यसूची में शामिल नहीं किए जाने से सरकार की मुश्किलें भी साफ हैं।
संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने विभिन्न राजनीतिक दलों के मुख्य सचेतकों से सत्र पूर्व चर्चा के बाद इन दो प्रमुख विधेयकों को कार्यसूची में शामिल नहीं करने की जानकारी देकर संप्रग सरकार की मुश्किल का संकेत तो दिया है। बहुब्रांड खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश .एफडीआई. के सवाल पर सर्वदलीय बैठक की मांग कर विपक्ष ने भी अपने इरादों का साफ संकेत दे दिया है।
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