फाइनल के लिए पंच लगाएगी मैरीकॉम
लंदन।
पहले परखती हैं फिर करती हैं वार
हर मुक्केबाज की तरह मैरीकॉम की अपनी अलग श्ौली है। वह पहले राउंड में प्रतिद्वंद्वी की क्षमता को परखती हैं और फिर आक्रामक होकर उस पर वार करती हैं।
ओलंपिक के लिए भार वर्ग बदला
जुड़वां बेटों की मां मैरीकॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008 और 2010 की विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीते थे। हालांकि उन्होंने ये सभी स्वर्ण पदक 46 और 48 किग्रा में जीते थे लेकिन ओलंपिक में यह वजन वर्ग न होने के कारण उन्हें 51 किग्रा फ्लाईवेट भार वर्ग में खुद को शिफ्ट करना पड़ा।
दो साल रहीं खेल से दूर
मैरीकॉम ने 2006 के बाद दो साल का ब्रेक ले लिया था, लेकिन उन्होंने अपने संन्यास से जोरदार वापसी करते हुए 2008 में एशियाई चैम्पियनशिप में रजत और विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण हासिल किया था। अपने गृह राज्य के डिंको सिंह से प्रेरणा लेकर मुक्केबाज बनी मैरीकॉम ने 2010 के ग्वांगझू एशियाड में कांस्य पदक भी जीता था।
एडम्स से पुराना नाता
भारतीय मुक्केबाज के सामने अब उसी निकोला एडम्स की चुनौती है जिसने उन्हें चीन के किनहुंगदाओ में हुए ओलंपिक क्वालीफायर में क्वार्टरफाइनल में 13-11 से पराजित किया था लेकिन एडम्स के फाइनल में पहुंचने के कारण ही मैरीकॉम को ओलंपिक का टिकट मिला था। ऎसे में उनका इस ब्रिटिश मुक्केबाज से गहरा नाता है इसलिए यह मुकाबला बेहद कठिन होने की उम्मीद है।
स्वर्ण पदक की उम्मीद बढ़ी- धायल
साई सेंटर में मेरीकोम के कोच रहे जयपुर के सागरमल धायल का कहना है कि मेरीकोम ने जिस तरह का प्रदर्शन शुरूआती दो मैचों में किया है उससे स्वर्ण की उम्मीद बढ़ गई है। धायल ने कहा, हमें शुरू से ही उम्मीद थी कि वह लंदन में पदक जरूर जीतेंगी। हालांकि सेमीफाइनल में उनकी राह थोड़ी कठिन होगी, लेकिन भरोसा है कि वह निकोला की चुनौती से पार पा लेंगी।
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