रेगिस्तान में लोग पलायन की ओर, मानसून की बेरुखी से खड़ा हुआ रोजी-रोटी का संकट
बाड़मेर
मानसून मेहरबान नहीं होने से खेती से आजीविका करने वाले हजारों परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। कई गांवों में पशुपालक पशुओं को तिलक लगा छोड़ रहे हैं, तो कुछ गांवों में लोग बारिश की आस छोड़ रोजगार के लिए पलायन का मानस बना चुके हैं। सावन सूखा बीतने के बाद बुवाई की उम्मीदें तो खत्म हो गई है,नतीजतन गांवों में चारा, पानी का भीषण संकट खड़ा हो गया है। मगर अभी तक प्रशासनिक स्तर पर राहत इंतजाम करने के प्रयास शुरू नहीं हो पाए हैं।पचास फीसदी घटा बुवाई लक्ष्य- बारिश न होने से सूखे जैसी स्थिति हो गई है। बाड़मेर के कुल 17 लाख 26 हजार हेक्टेयर भूमि में खरीफ बुवाई का लक्ष्य तय किया गया था। मगर मानसून की बेरुखी के चलते लक्ष्य पचास फीसदी घट गया है। साथ ही 95 फीसदी गांवों में बुवाई शुरू नहीं हो पाई हैं। इतना ही नहीं बाड़मेर में 5 हजार हेक्टेयर भूमि में बोई गई खरीफ की फसल भी बारिश के अभाव में सूखने लगी है। जबकि 95 फीसदी गांवों में बारिश के अभाव में खेत सूने है। बुवाई की तैयारी में जुटे किसानों को लंबे इंतजार के बाद निराशा ही हाथ लगी है। जानकारी के मुताबिक बाजरे की बुवाई का समय बीत चुका है। आगामी एक सप्ताह तक बारिश नहीं हुई तो मूंग, मोठ व तिल की फसलों की बुवाई भी संभव नहीं होगी। इससे पैदावार प्रभावित होगी साथ बुवाई का रकबा भी घटेगा। इस स्थिति में कृषि विभाग ने आपात स्थिति से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार की है। जबकि सरकारी स्तर पर सूखे के संकट से निपटने को लेकर कार्ययोजना तैयार नहीं की गई है। कृषि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि बारिश न होने से सूखे जैसी स्थिति हो सकती है।
हर साल अकाल की मार
थार का अकाल से चोली दामन का साथ रहा है। बीते बरसों की बात करें तो हर एक साल बाद अकाल के हालात बने हैं। वर्ष 2003 से 05 तक लगातार अकाल। बाद में 2007 व 08 में फिर अकाल पड़ा। 2009 में आधे जिले में बारिश नहीं होने से खरीफ की बुवाई नहीं हो पाई। अब फिर बारिश में देरी के चलते हालात चिंताजनक हो रहे हैं।
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