25 से बदल जाएगा प्रोटोकाल
नई दिल्ली।
बरसों से दिल्ली के तालकटोरा रोड पर 13 नम्बर बंगले में रहने वाले प्रणब दा का राष्ट्रपति चुना जाना गुरूवार को तय हो गया, लेकिन यूपीए सरकार का दावा है कि प्रणब मुखर्जी को दो तिहाई से ज्यादा वोट मिलेंगे। तो क्या प्रणब दा की जीत का अंतर पीए संगमा को मिले वोटों से ज्यादा होगा। राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटों की गिनती 22 जुलाई को होगी।
यूं तो प्रणब मुखर्जी ने 2007 में राष्ट्रपति बनने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें सरकार में बने रहने का निर्देश दिया था, लेकिन बहुत कम लोग ये बात जानते होंगे कि 1982 में तब के युवा वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी उस वक्त अचंभे में पड़ गए थे, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद को राष्ट्रपति बनाए जाने का संकेत प्रणब मुखर्जी को दिया था और इस पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से सलाह-मशविरा करने को कहा था। तब आर. वेंकटरमन और पीवी नरसि?हा राव ने इस विचार को सिरे से इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि उन्हें लगा था कि कहीं प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बना दिया जाए। नरसि?हा राव खुद उस वक्त राष्ट्रपति बनना चाहते थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने अपने गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति पद का उ?मीदवार बनाकर सबको चौंका दिया। ज्ञानी जैल सिंह ने इससे पहले कहा था कि इंदिरा जी अगर उन्हें झाड़ू लगाने के लिए भी कहेंगी तो वो तैयार होंगे। फिर उन्हीं ज्ञानी जैल सिंह ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुने जाने से पहले ही प्रधानममंत्री नियुक्त कर दिया और बाद में कहा कि "मैंने इंदिरा गांधी का कर्ज चुका दिया।" उस वक्त प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनने की तैयारी में लगे थे। शायद इसी का हर्जाना उन्हें भुगतना पड़ा और राजीव गांधी ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल नहीं किया और प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस छोड़कर जाना पड़ा। दो साल बाद उनकी कांग्रेस में वापसी हुई लेकिन उन्हें कांग्रेस का टिकट तब भी नहीं दिया गया।
नरसिहा राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर मंत्री बनाया। 43 साल से राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी ने 2004 में पहली बार लोकसभा का चुनाव इस उ?मीद से लड़ा था कि शायद सोनिया गांधी कांग्रेस की सरकार बनने की हालत में उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा करें, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने डा. मनमोहन सिंह को चुना। 1982 में वित्तमंत्री रहते हुए जिन मनमोहन सिंह को उन्होंने रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया था, उनकी सरकार में मंत्री रहने का निर्णय उन्हें मानना पड़ा और इसलिए वो 2007 में राष्ट्रपति बनना चाहते थे, लेकिन तब राजस्थान के राजभवन में बैठी प्रतिभा पाटील को राष्ट्रपति भवन पहुंचाने का सामूहिक फैसला हुआ।
प्रणब मुखर्जी के लिए अब जिंदगी का फुल सर्किल हो गया लगता है। 2004 से जून 2012 तक प्रणब मुखर्जी को हर समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इंतजार करना होता था लेकिन 25 जुलाई 2012 से प्रोटोकाल बदल जाएगा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को महामहिम से पहले समारोह स्थल पर पहुंचना होगा।
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