अगला वित्त मंत्री कौन, पीएम पर निगाहें 
नई दिल्ली।
केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के संकटमोचक और विषम परिस्थितियों में देश की अर्थव्यवस्था को संभालने वाले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा के साथ ही अगले वित्त मंत्री को लेकर अटकलबाजी शुरू हो गई है। लेकिन मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री बताकर यह संकेत देने का प्रयास भी किया कि देश की खराब हो रही आर्थिक हालात के मद्देनजर इस महत्वपूर्ण मंत्रालय को डा. सिंह अपने पास भी रख सकते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जी 20 की बैठक में भाग लेने के बाद स्वदेश लौटने पर मुखर्जी वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देंगे। मुखर्जी का नाम जब से राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार के रूप के चर्चा मेंं आया तभी से अगले वित्त मंत्री को लेकर अटकलबाजी शुरू हो गई थी। प्रधानमंत्री 24 जून को स्वदेश लौट रहे हैं। हालांकि इस बीच मुखर्जी ने अगले वित्त मंत्री के सवाल पर कहा है कि इसका फैसला प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करेंगी। उन्होंने कहा कि पार्टी में ऎसे बहुत सारे नेता हैं जो इस पद को सफलतापूवर्क संभाल सकते हैं। प्रधानमंत्री स्वयं प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हैं। मुखर्जी को आधिकारिक रूप से संप्रग प्रत्याशी बनाने जाने के बाद राजनीतिक गलियारों के साथ ही उद्योग जगत में भी इसको लेकर जोरशोर से चचाएं शुरू हो गई। 
अगले वित्त मंत्री की दौड़ ने कई नाम
जिन नामों पर चर्चा चल रही है उनमें रक्षा मंत्री ए के एंटनी. गृह मंत्री पी चिंदबरम, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलुवालिया, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष एवं रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डा सी रंगराजन, ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा, शहरी विकास मंत्री कमलनाथ और बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे शामिल है। अहलूवालिया और डा. रंगराजन ऎसे व्यक्ति है जिन्हें आर्थिक मामलो में प्रधानमंत्री का समर्थन पहले से प्राप्त है। चिंदबरम वित्त मंत्री रह चुके हैं और उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था को संचालित करने का अनुभव है। कांग्रेस में कमलनाथ को लेकर लगभग आम सहमति दिख रही है और उनके नाम पर संप्रग के घटक दलों में भी आपत्ति नहीं होने की संभावना है। चिंदबरम पर घोटाले के आरोप लग हैं और विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है।
पीएम अपने पास रख सकते हैं
ऎसी भी अटकलें हैं कि प्रधानमंत्री फिलहाल कुछ समय के लिए वित्त मंत्रालय अपने अधीन रखें। देश की अर्थव्यवस्था के समय अभी गंभीर चुनौतियां है। गत 31 मार्च को समाप्त तिमाही में आर्थिक विकास दर नौ वर्ष के न्यूनतम स्तर 5.3 प्रतिशत पर लुढक गई। रिजर्व बैंक की कठोर मौद्रिक नीति के बावजूद महंगाई से आम लोगों को राहत नहीं मिल रही है। आर्थिक सुधार प्रक्रिया के आगे नहीं बढ़ने के आरोपों को सरकार पहले से ही झेल रही है। इन चुनौतियों के बीच देश की अर्थव्यवस्था को गति देने वाले वित्त मंत्री की आवश्यकता है।

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