करना होगा इंतजार
कांग्रेस सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही हराती है. एक बानगी यूपी विधानसभा चुनाव ने दिखा दी. कांग्रेस के अभियान को कुछ कांग्रेसी नेताओं ने ही खराब कर दिया.उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस के साथ-साथ राजनीति को भी एक नया शक्ल दी है. हालांकि चुनाव के दौरान हुई कुछ अनहोनी घटनाओं और चुनाव से पूर्व की समस्याओं ने राहुल को बड़े चुनावी फ़ायदे से महरूम कर दिया. अकसर कहा जाता है कि कांग्रेस सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही हराती है. इसकी भी एक बानगी यूपी विधानसभा चुनाव ने हमें दिखा दी. कांग्रेस के सुव्यवस्थित अभियान को कुछ कांग्रेसी नेताओं ने ही खराब कर दिया. यही नेता यूपी में राहुल के सलाहकार भी रहे. उनकी बेतुकी बयानबाजी ने राहुल के प्रभाव को कम कर दिया. कहीं दिग्विजय सिंह का बाटला कांड पर बयान, तो कहीं केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के राष्ट्रपति शासन के जुमले ने राहुल के प्रति बन रहे गुडविल को छिन्न-भिन्न कर दिया.इस चुनाव में राहुल गांधी को उनकी मेहनत के अनुरूप सफ़लता नहीं मिली, तो इसकी कुछ स्पष्ट वजहें हैं. पहला, आज मीडिया बहुत सशक्त माध्यम बनकर उभरा है. इसने राहुल गांधी से बहुत ज्यादा की उम्मीद लगा दी. मीडिया को जमीनी सच्चाई के बारे में सटीक जानकारी नहीं थी. लेकिन एक बात भुला दी गयी, वो यह कि जमीनी हालात बदलने में समय लगता है. हालांकि राहुल गांधी इस बात को बखूबी समझ रहे थे. वे बार-बार कह रहे थे कि जल्दी स्थिति बदलने की उम्मीद बेमानी है. बदलाव आयेगा, वह स्थायी भी होगा, लेकिन धीरे-धीरे होगा. इस बार लोगों ने राहुल को नकार दिया. लेकिन एक बात बिल्कुल साफ़ है. जैसे-जैसे समय बीतेगा, यूपी की जनता को राहुल की बातों की समझ पैदा होगी और इसका फ़ायदा कांग्रेस को आगामी चुनावों में मिलेगा.दूसरा, राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश में कोई राजनीतिक आधार नहीं है. न तो किसी जाति का बड़ा समर्थन है, न ही वे किसी धर्म या संप्रदाय की नुमाइंदगी करते हैं. बेस वोट के अभाव में उन्हें बड़े मतदाता समूह का समर्थन नहीं मिला. प्रदेश में जब से सपा और बसपा उभरी है, यादव, दलित, मुसलिम वोट, जो कि कांग्रेस के वोट बैंक थे, उनके पाले में चले गये. राहुल को मिश्रित वोट ही मिलता रहा है. इसकी संख्या में वृद्धि होगी, तो कांग्रेस को बढ़त मिलेगी. हालांकि इस बार मिश्रित वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके और बढ़ने पर ही कांग्रेस प्रदेश की सत्ता के करीब पहुंच सकेगी. तीसरा, आज युवा मतदाताओं की तादाद बढ़ी है. वे बड़ी संख्या में मतदान करने आये हैं. युवा मतदाताओं को राहुल से जोड़ा जा रहा था. लेकिन एक बात हम भूल गये कि युवाओं की भी जातिहोती है. युवाओं की संख्या बढ़ना राहुल से कहीं ज्यादा अखिलेश यादव के लिए फ़ायदेमंद रहा.
चौथा, अखिलेश के पास पहले से यूपी में संगठन है और यादवों का वोट आधार है, जिसका उन्हें फ़ायदा मिला और सपा बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी. लेकिन राहुल की स्थिति इसके ठीक विपरीत है. राहुल के पास करिश्माई व्यक्ितत्व के अलावा यूपी में कुछ भी नहीं है.इस अभियान के दौरान राहुल ने युवाओं को कांग्रेस से जोड़ा है. पूरे चुनाव के दौरान राहुल वर्तमान नहीं, बल्कि भविष्य के कांग्रेस का चेहरा गढ़ते रहे. राहुल जनता से नये तरीके से संवाद कर नीति और नियोजन की प्रक्रिया को शक्ल देते रहे. राहुल की राजनीति को समझना है, तो उनके भाषण के ऊपर एक नजर डालनी चाहिए. इससे स्पष्ट हो जायेगा कि वे वर्तमान विधानसभा चुनाव के नतीजों से आगे की बात करते हुए कांग्रेस को आधार दे रहे थे. वे अपने भाषण में बार-बार कहते रहे कि मैंने विकास के बारे में जितना आप लोगों से सीखा है, उतना अमेरिका और इंग्लैंड के प्रोफ़ेसरों से नहीं सीखा. ऐसा कहकर वे जनतंत्र की जड़ को और मजबूती प्रदान करते रहे. वे बार-बार यथास्थिति को बदलने पर जोर देते दिख रहे थे. उनकी प्रतिबद्धता में सच्चाई है.राहुल को आज यूपी में एक युवा नेता की जरूरत है, जो प्रदेश की गलियों से निकलकर युवाओं और विकास की बात करता हो. कुल मिलाकर यूपी में राहुल की कठिनाइयां असीम हैं. प्रदेश में कांग्रेस मृतप्राय है. उसके पास न कोई संगठन है और न ही राज्य स्तर पर कोई चमकता नेतृत्व. जहां जातिगत आधार के वोट जनतंत्र की दिशा तय करते हों, वहां जातियों से परे विकास के मुद्दे को चुनावी विमर्श में महत्वपूर्ण बनाने जैसी कठिन जिम्मेदारी राहुल ने इस चुनाव में अपने लिए तय की. यूपी में भले ही मतदान जाति के आधार पर हुए हों, लेकिन जाति या विकास जैसे विपरीत दिखते ध्रुवों के बीच मतदाताओं में एक प्रकार का असमंजस पैदा करना राहुल गांधी की इस चुनाव में बड़ी उपलब्धि है. यही असमंजस यूपी में भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा.

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