होली पर कुंवारे करते है ईलोजी की पूजा
बाड़मेर। नि:संतानों को संतान तथा अविवाहितों को योग्य सुंदर वधू मिलने की कामना से राजस्थान में मारवाड़ के इस अंचल में होली पर्व पर ईलोजी की पूजा अर्चना करने का प्रचलन बरकरार है।सीमावर्ती बाड़मेर जिला मुख्यालय औद्योगिक नगर बालोतरा तथा वीर दुर्गादास राठौड़ से जुडे़ कनाना इत्यादि स्थलों पर ईलोजी की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जहां होली के अवसर पर उनकी पूजा की जाती है। होली का डाडा लगने के साथ होली का दहन तक पूजा अर्चना का सिलसिला निरंतर चलता रहता है।शादीशुदा लोग संतान प्राप्ति के लिए और अविवाहित युवक सुंदर वधू पाने की मनोकामना के साथ ईलोजी की आदमकद प्रतिमा के सामने नारियल और बतासे का प्रसाद चढ़ाकर माला पहनाकर ढोक लगाते है। बाड़मेर में ढाणी बाजार के व्यापारी ईलोजी की प्रतिमा को नए वस्त्रों तथा आभूषणों से सुसज्जित करते है। किवंदती के अनुसार ईलोजी भक्त प्रहलाद की बुआ और हिरण्यकशिपु कश्यप की बहन होलिका के मंगेतर थे। अग्नि में भक्त प्रह्लाद बच गए, लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई। इससे दुखी ईलोजी ने भस्म अपने शरीर पर मल ली और होलिका की याद में कुंवारे ही रहे। इसी कथा के संदर्भ में उनकी पूजा का प्रचलन हो गया।थार मरुस्थल के इस सरहदी इलाके में होली का रंग परवान चढ़ने लगा है। टीवी संस्कृति से शहरी क्षेत्रों में होली का उत्साह कुछ कम हुआ है, लेकिन ग्रामीण अंचल में चंग और ढप की थाप पर गैर नृत्य तथा महिलाओं द्वारा लूर लिए जाने की परंपरा आज भी जीवंत है।
बाड़मेर। नि:संतानों को संतान तथा अविवाहितों को योग्य सुंदर वधू मिलने की कामना से राजस्थान में मारवाड़ के इस अंचल में होली पर्व पर ईलोजी की पूजा अर्चना करने का प्रचलन बरकरार है।सीमावर्ती बाड़मेर जिला मुख्यालय औद्योगिक नगर बालोतरा तथा वीर दुर्गादास राठौड़ से जुडे़ कनाना इत्यादि स्थलों पर ईलोजी की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जहां होली के अवसर पर उनकी पूजा की जाती है। होली का डाडा लगने के साथ होली का दहन तक पूजा अर्चना का सिलसिला निरंतर चलता रहता है।शादीशुदा लोग संतान प्राप्ति के लिए और अविवाहित युवक सुंदर वधू पाने की मनोकामना के साथ ईलोजी की आदमकद प्रतिमा के सामने नारियल और बतासे का प्रसाद चढ़ाकर माला पहनाकर ढोक लगाते है। बाड़मेर में ढाणी बाजार के व्यापारी ईलोजी की प्रतिमा को नए वस्त्रों तथा आभूषणों से सुसज्जित करते है। किवंदती के अनुसार ईलोजी भक्त प्रहलाद की बुआ और हिरण्यकशिपु कश्यप की बहन होलिका के मंगेतर थे। अग्नि में भक्त प्रह्लाद बच गए, लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई। इससे दुखी ईलोजी ने भस्म अपने शरीर पर मल ली और होलिका की याद में कुंवारे ही रहे। इसी कथा के संदर्भ में उनकी पूजा का प्रचलन हो गया।थार मरुस्थल के इस सरहदी इलाके में होली का रंग परवान चढ़ने लगा है। टीवी संस्कृति से शहरी क्षेत्रों में होली का उत्साह कुछ कम हुआ है, लेकिन ग्रामीण अंचल में चंग और ढप की थाप पर गैर नृत्य तथा महिलाओं द्वारा लूर लिए जाने की परंपरा आज भी जीवंत है।

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