सीएम को लेकर मुलायम-अखिलेश पर सस्पेंस
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद एसपी में मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी तक फैसला नहीं लिया जा सका है.हालांकि, एसपी की ओर से यह एलान कर दिया गया है कि 12 मार्च को नया मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण करेगा.पार्टी में नेताजी यानी मुलायम सिंह और बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर दरार तो जरूर है, पर यह दो पीढ़ियों के तकरार का नतीजा है.
एसपी में नई पीढ़ी का तर्क है कि यह चुनाव अखिलेश के दम और उनके कुशल नेतृत्व का फल है, इसिलए उन्हें सरकार का मुखिया बनाए जाए. लेकिन पुरानी पीढ़ी इसके लिए तैयार नहीं है.
ऐसी स्थिति में नेताजी के सामने कई मुश्किलें हैं. पहला यह कि उन्हें खुद राज्य की गद्दी विरासत में बेटे को सौंपने में कोई परहेज़ नहीं है, लेकिन सामने चुनौती कई हैं.
अगर बेटे को गद्दी पर बैठाते हैं तो पुरानी पीढ़ी के अगुवा आजम खान जैसे कई कद्दावर नेता और घर में शिवपाल यादव नाराज़ हो जाएंगे, पार्टी में भी फूट भी पकड़ सकती है.
दूसरी ओर अगर खुद सीएम बनते हैं तो युवा पीढ़ी रुठ जाएगी, संदेश यह भी जाएगा कि पार्टी के खेवनहार को उसका उचित मुआवज़ा नहीं मिला.यानी कुलमिलकार मुलायम के सामने एक तरफ खाई तो दूसरे तरफ कुआं है और उस पर दिलचस्प बात यह है कि पार्टी को उम्मीद से बड़ी जीत मिली है. या यूं कहें कि यूपी में सरकार तो तय हो गई है लेकिन सीएम नहीं. सस्पेंस का कांटा मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच लगातार झूल रहा है.
10 मार्च को होगा फैसला
अब समाजवादी पार्टी के विधायक दल की बैठक 10 मार्च को होगी जिसके बाद पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. विधायक दल की बैठक में ही अगले मुख्यमंत्री के नाम पर औपचारिक मुहर लगेगी.
चुनावों के दौरान खुद मुलायम सिंह ने कई बार इशारा किया था कि अखिलेश लखनऊ की गद्दी संभालेंगे और वो दिल्ली की राजनीति में दखल देंगे.लेकिन अब अखिलेश मुलायम को सीएम बनाने की वकालत कर रहे हैं. लाख टके का सवाल है कि क्या वाकई मुलायम सिंह सीएम बनेंगे या फिर वो पार्टी के युवराज अखिलेश का राजतिलक करेंगे. सच तो है कि फिलहाल इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं हैं.
एसपी में नई पीढ़ी का तर्क है कि यह चुनाव अखिलेश के दम और उनके कुशल नेतृत्व का फल है, इसिलए उन्हें सरकार का मुखिया बनाए जाए. लेकिन पुरानी पीढ़ी इसके लिए तैयार नहीं है.
ऐसी स्थिति में नेताजी के सामने कई मुश्किलें हैं. पहला यह कि उन्हें खुद राज्य की गद्दी विरासत में बेटे को सौंपने में कोई परहेज़ नहीं है, लेकिन सामने चुनौती कई हैं.
अगर बेटे को गद्दी पर बैठाते हैं तो पुरानी पीढ़ी के अगुवा आजम खान जैसे कई कद्दावर नेता और घर में शिवपाल यादव नाराज़ हो जाएंगे, पार्टी में भी फूट भी पकड़ सकती है.
दूसरी ओर अगर खुद सीएम बनते हैं तो युवा पीढ़ी रुठ जाएगी, संदेश यह भी जाएगा कि पार्टी के खेवनहार को उसका उचित मुआवज़ा नहीं मिला.यानी कुलमिलकार मुलायम के सामने एक तरफ खाई तो दूसरे तरफ कुआं है और उस पर दिलचस्प बात यह है कि पार्टी को उम्मीद से बड़ी जीत मिली है. या यूं कहें कि यूपी में सरकार तो तय हो गई है लेकिन सीएम नहीं. सस्पेंस का कांटा मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच लगातार झूल रहा है.
10 मार्च को होगा फैसला
अब समाजवादी पार्टी के विधायक दल की बैठक 10 मार्च को होगी जिसके बाद पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. विधायक दल की बैठक में ही अगले मुख्यमंत्री के नाम पर औपचारिक मुहर लगेगी.
चुनावों के दौरान खुद मुलायम सिंह ने कई बार इशारा किया था कि अखिलेश लखनऊ की गद्दी संभालेंगे और वो दिल्ली की राजनीति में दखल देंगे.लेकिन अब अखिलेश मुलायम को सीएम बनाने की वकालत कर रहे हैं. लाख टके का सवाल है कि क्या वाकई मुलायम सिंह सीएम बनेंगे या फिर वो पार्टी के युवराज अखिलेश का राजतिलक करेंगे. सच तो है कि फिलहाल इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं हैं.

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