29 रूपए रोज खर्च करने वाला गरीब नहीं!
नई दिल्ली। योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी के आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। यानि अब शहर में 28 रूपए 65 पैसे प्रतिदिन और गांवों में 22 रूपए 42 पैसे प्रतिदिन खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता। नए फॉर्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रूपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रूपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। सोमवार को जारी इन आंकड़ों से एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के बाद शुरू हुई थी। इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रूपए प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था। इसके बाद भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकारों को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने योजना आयोग के प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया को चुनौती दी थी कि वो अपने बयान पर अमल करते हुए खुद 32 रूपए में एक दिन का खर्च चला कर दिखाएं।
विश्लेषकों का कहना है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए ये आंकड़े भ्रामक हैं और ऎसा लगता है कि आयोग का मकसद गरीबी की संख्या को घटाना है ताकि कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा देना पड़े। पिछले पांच साल के तुलनात्मक आंकड़ें कहते हैं कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के दौरान देश में गरीबी 7 फीसदी घटी है। आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो भारत की 37 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है जबकि एक दूसरे अनुमान के मुताबिक ये आंकड़ा 77 प्रतिशत हो सकता है।
नई दिल्ली। योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी के आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। यानि अब शहर में 28 रूपए 65 पैसे प्रतिदिन और गांवों में 22 रूपए 42 पैसे प्रतिदिन खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता। नए फॉर्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रूपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रूपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। सोमवार को जारी इन आंकड़ों से एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के बाद शुरू हुई थी। इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रूपए प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था। इसके बाद भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकारों को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने योजना आयोग के प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया को चुनौती दी थी कि वो अपने बयान पर अमल करते हुए खुद 32 रूपए में एक दिन का खर्च चला कर दिखाएं।
विश्लेषकों का कहना है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए ये आंकड़े भ्रामक हैं और ऎसा लगता है कि आयोग का मकसद गरीबी की संख्या को घटाना है ताकि कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा देना पड़े। पिछले पांच साल के तुलनात्मक आंकड़ें कहते हैं कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के दौरान देश में गरीबी 7 फीसदी घटी है। आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो भारत की 37 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है जबकि एक दूसरे अनुमान के मुताबिक ये आंकड़ा 77 प्रतिशत हो सकता है।

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