पराए आतंक का साया
दिल्ली में एक इजरायली राजनयिक की कार में बम विस्फोट से पश्चिम एशिया के आतंकवाद ने हमारे देश में दस्तक दी है। अब तक हम अपने उपमहाद्वीप के आतंकवाद से जूझ रहे थे, लेकिन शायद हमें अब इस पराए आतंक से भी सतर्क रहना पड़ेगा। ईरान पर जैसे-जैसे पश्चिमी देश अपना शिकंजा कस रहे हैं, वैसे-वैसे पश्चिम एशिया की स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। बड़ी समस्या यह है कि इजरायल और फलस्तीन, दोनों का नेतृत्व फिलहाल कट्टरपंथियों के पास है, हालांकि वहां बहुसंख्यक नागरिक उदार और शांतिपूर्ण हल के पक्ष में होते जा रहे हैं। ईरान में धार्मिक सत्ता है, लेकिन ईरानी समाज उसके बाद परंपरागत रूप से उदार और सहिष्णु ही बना रहा है। यह स्थिति परमाणु हथियारों के मामले में पश्चिमी देशों के दबाव से बदली है और ईरान में भी कट्टरता बढ़ी है। ईरान को शक है कि उसके परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने के लिए इजरायल कोशिशें कर रहा है। पिछले दिनों तीन ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की कारों पर दिल्ली जैसे ही बम हमले हुए। दो वैज्ञानिक इन हमलों में मारे गए और एक गंभीर रूप से जख्मी हो गया। ईरान का आरोप यह है कि ये हमले इजरायल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद ने करवाए हैं। इसी वजह से यह शक पुख्ता होता है कि बदला लेने के लिए ईरान इसी तरह के हमले करवा रहा है।
भारत के अलावा जॉजिर्या में भी इजरायली दूतावास के करीब कार पाई गई, जिसमें बम रखा गया था। सौभाग्य से वह बम पहले ही नजर में आ गया, इसलिए उसे बेकार कर दिया गया। ईरान ने हालांकि इन हमलों में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया है और इन हमलों की निंदा की है, पर खतरा ये है कि यह आतंक की जंग और उग्र हो सकती है। कई जानकार यह मान रहे हैं कि इजरायल जवाबी कार्रवाई में ईरान पर सीधे हमला कर सकता है या ईरानी ठिकानों को गुप्त रूप से निशाना बना सकता है। इजरायल की नीति यह रही है कि वह किसी भी हिंसा या आक्रामक कार्रवाई का जवाब ज्यादा हिंसा या आक्रामक कार्रवाई से देता है। इसलिए यह आशंका पुख्ता होती है कि हिंसा का दौर ज्यादा खतरनाक होगा।
भारत के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि वह ईरान और अन्य मुस्लिम देशों का भी मित्र है और इजरायल का भी। फलस्तीनी लोगों के संघर्ष का भारत शुरू से समर्थन करता आया है और इजरायल से मित्रता हो जाने के बाद भी यह समर्थन बरकरार है। यह न्यायपूर्ण नहीं है और राष्ट्र हित में भी नहीं है कि ईरान के मामले में भारत पश्चिमी देशों का आंख मूंदकर साथ दे। दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश भी ईरान से खनिज तेल के आयात की वजह से ईरान पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के पक्ष में नहीं हैं। भारत के परंपरागत रिश्तों और समन्वय की नीति की वजह से यह उम्मीद की जाती है कि पश्चिम और ईरान के बीच संघर्ष में भारत मध्यस्थ की भूमिका अदा कर सकता है, लेकिन अगर इस तरह के आतंक की छाया भारत पर पड़ती है, तो उसकी मध्यस्थता की क्षमता कम हो जाएगी।
यह भी आशंका है कि भारत के ईरान से संबंधों को खराब करने के षड्यंत्र के तौर पर यह विस्फोट किया गया हो। अभी भारत सरकार ने दिल्ली में हुए बम विस्फोट के लिए किसी पर भी आरोप नहीं लगाए हैं। अमेरिका और उसके यूरोपीय मित्र पूरी तरह एकतरफा रुख के साथ स्थिति को और मुश्किल बना रहे हैं। इस वक्त जरूरत आक्रामकता की नहीं, बल्कि सुलह-सफाई की है, वरना शायद सारी दुनिया युद्ध और आतंकवादी हिंसा से घिर जाएगी।
भारत के अलावा जॉजिर्या में भी इजरायली दूतावास के करीब कार पाई गई, जिसमें बम रखा गया था। सौभाग्य से वह बम पहले ही नजर में आ गया, इसलिए उसे बेकार कर दिया गया। ईरान ने हालांकि इन हमलों में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया है और इन हमलों की निंदा की है, पर खतरा ये है कि यह आतंक की जंग और उग्र हो सकती है। कई जानकार यह मान रहे हैं कि इजरायल जवाबी कार्रवाई में ईरान पर सीधे हमला कर सकता है या ईरानी ठिकानों को गुप्त रूप से निशाना बना सकता है। इजरायल की नीति यह रही है कि वह किसी भी हिंसा या आक्रामक कार्रवाई का जवाब ज्यादा हिंसा या आक्रामक कार्रवाई से देता है। इसलिए यह आशंका पुख्ता होती है कि हिंसा का दौर ज्यादा खतरनाक होगा।
भारत के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि वह ईरान और अन्य मुस्लिम देशों का भी मित्र है और इजरायल का भी। फलस्तीनी लोगों के संघर्ष का भारत शुरू से समर्थन करता आया है और इजरायल से मित्रता हो जाने के बाद भी यह समर्थन बरकरार है। यह न्यायपूर्ण नहीं है और राष्ट्र हित में भी नहीं है कि ईरान के मामले में भारत पश्चिमी देशों का आंख मूंदकर साथ दे। दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश भी ईरान से खनिज तेल के आयात की वजह से ईरान पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के पक्ष में नहीं हैं। भारत के परंपरागत रिश्तों और समन्वय की नीति की वजह से यह उम्मीद की जाती है कि पश्चिम और ईरान के बीच संघर्ष में भारत मध्यस्थ की भूमिका अदा कर सकता है, लेकिन अगर इस तरह के आतंक की छाया भारत पर पड़ती है, तो उसकी मध्यस्थता की क्षमता कम हो जाएगी।
यह भी आशंका है कि भारत के ईरान से संबंधों को खराब करने के षड्यंत्र के तौर पर यह विस्फोट किया गया हो। अभी भारत सरकार ने दिल्ली में हुए बम विस्फोट के लिए किसी पर भी आरोप नहीं लगाए हैं। अमेरिका और उसके यूरोपीय मित्र पूरी तरह एकतरफा रुख के साथ स्थिति को और मुश्किल बना रहे हैं। इस वक्त जरूरत आक्रामकता की नहीं, बल्कि सुलह-सफाई की है, वरना शायद सारी दुनिया युद्ध और आतंकवादी हिंसा से घिर जाएगी।

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