बिल्डरों को चांदी
जयपुर नगरीय विकास विभाग जो न कर दे, वो थोड़ा ही है। पहले सीएम के आदेश को पलटा और बिल्डरों को चांदी कूटने की छूट दे दी। मामला खुलता दिखा, तो फिर से अपने ही आदेश को पलट कर वही राग अलापने लगे कि जो पुराने आदेश थे, काम उसी के अनुरूप होगा।
मामला कांग्रेस सरकार की ओर से साल 2010 में बनाई गई "राजस्थान टाउनशिप पॉलिसी" का है। जिसमें तय था कि किसी भी बिल्डर को टाउनशिप विकसित करने के लिए उसी टाउनशिप में पांच फीसदी जमीन गरीबों के लिए छोड़ना अनिवार्य था। इसी जमीन पर गरीबों को भी मकान दिये जाने थे। बिल्डरों ने कुछ दिन तो आदेश माने, लेकिन जब उन्हें पांच फीसदी जमीन खलने लगी, तो उन्होंने रसूख का इस्तेमाल किया।
लिहाजा, चुपके से नगरीय विकास विभाग ने एक आदेश निकाल कर बिल्डर को उसी टाउनशिप में गरीबों की हिस्सेदारी से राहत देते हुए कहीं दूसरी योजना में भी उन्हें खपाने की इजाजत दे दी।
नतीजा यह हुआ कि बिल्डरों का कीमती जमीनों में से पांच फीसदी हिस्सा जाने का डर खत्म हो गया और यह खेल चल पड़ा। अब खबर है कि यह सारा मसला सीधे सीएम तक पहुंच गया। जिसके बाद नगरीय विकास विभाग ने फिर से गुप-चुप आदेशों का ही सहारा लिया और वापस पुराने आदेश पर लौट आए, जिसमें उसी टाउनशिप में पांच फीसदी जमीन गरीबों को दी जानी थी।
ये था प्लान : दरअसल शहर के सलीके से विकास के लिए नगरीय विकास विभाग ने 2010 में टाउनशिप पॉलिसी बनाकर इसके हिसाब से काम करने के निर्देश दिए। यह टाउनशिप पॉलिसी 10 हेक्टेयर और इससे ज्यादा जमीन पर बनने वाली टाउनशिप के लिए बनाई गई थी। पॉलिसी के तहत सरकार ने यह तय किया था कि निजी टाउनशिप में गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस/एलआईजी के लिए पांच फीसदी जमीन छोड़ी जाएगी। टाउनशिप में छोड़ी गई 5 फीसदी जमीन में ही गरीबों को मकान बनाकर दिए जाने थे।
ऎसे निकला कांटा : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश के बाद बनी टाउनशिप पॉलिसी-2010 के मुताबिक, टाउनशिप के अंदर 50 से 54 फीसदी निर्मित हिस्सा रखा जाएगा और इसी में पांच फीसदी हिस्सा अफोर्डेबल मकानों के लिए रखा जाना था। पूरी टाउनशिप में गरीबों का यही हिस्सा बिल्डर्स को रास नहीं आया और इसी में बदलाव के लिए कवायद शुरू हो गई। लिहाजा बिल्डर्स/डेवलपर्स को फायदा पहुंचाने के लिए नगरीय विकास विभाग ने पॉलिसी लागू होने के कुछ दिन बाद 2011 में ही संशोधित आदेश जारी कर इन बिल्डर्स को राहत देने का निर्णय कर लिया। नए आदेश में फैसला लिया गया कि टाउनशिप में गरीबों के पांच फीसदी मकान बिल्डर कहीं दूसरी जगह भी दे सकता है। इस फैसले के बाद जम कर टाउनशिप के मानचित्र स्वीकृत होने लगे और महंगी टाउनशिप से गरीबों का कांटा निकल गया।
अब किया दुरूस्त : टाउनशिप में किए बदलाव के बाद जब इस खेल का खुलासा होने लगा और बात सीएमओ तक पहुंची, तो नगरीय विकास विभाग ने फिर से आदेश में बदलाव कर टाउनशिप के उसी आदेश को बहाल रखने का फैसला किया है, जिसमें गरीबों के लिए पांच फीसदी हिस्सा उसी टाउनशिप में दिया जाना था। ऎसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि दो साल के अंदर ही दो बार आदेश बदलने वाला विभाग अपने किस कदम को ठीक ठहरा सकता है? आदेश बदलने वाले आदेश को या फिर वापस पुराने आदेश पर लौटने वाले आदेश को?
आरक्षित रखी जाएगी जमीन :- बिल्डर्स और डवलपर्स की मांग पर टाउनशिप-2010 के अफोर्डेबल कोटे को अन्यत्र देने की छूट दी गई थी अब जनहित में इसको वापस ले लिया गया है। इसके तहत अब टाउनशिप में ही पांच फीसदी जमीन अफोर्डेबल के लिए आरक्षित रखी जाएगी।
- पीके देब, अतिरिक्त मुख्य सचिव, नगरीय विकास विभाग
जयपुर नगरीय विकास विभाग जो न कर दे, वो थोड़ा ही है। पहले सीएम के आदेश को पलटा और बिल्डरों को चांदी कूटने की छूट दे दी। मामला खुलता दिखा, तो फिर से अपने ही आदेश को पलट कर वही राग अलापने लगे कि जो पुराने आदेश थे, काम उसी के अनुरूप होगा।
मामला कांग्रेस सरकार की ओर से साल 2010 में बनाई गई "राजस्थान टाउनशिप पॉलिसी" का है। जिसमें तय था कि किसी भी बिल्डर को टाउनशिप विकसित करने के लिए उसी टाउनशिप में पांच फीसदी जमीन गरीबों के लिए छोड़ना अनिवार्य था। इसी जमीन पर गरीबों को भी मकान दिये जाने थे। बिल्डरों ने कुछ दिन तो आदेश माने, लेकिन जब उन्हें पांच फीसदी जमीन खलने लगी, तो उन्होंने रसूख का इस्तेमाल किया।
लिहाजा, चुपके से नगरीय विकास विभाग ने एक आदेश निकाल कर बिल्डर को उसी टाउनशिप में गरीबों की हिस्सेदारी से राहत देते हुए कहीं दूसरी योजना में भी उन्हें खपाने की इजाजत दे दी।
नतीजा यह हुआ कि बिल्डरों का कीमती जमीनों में से पांच फीसदी हिस्सा जाने का डर खत्म हो गया और यह खेल चल पड़ा। अब खबर है कि यह सारा मसला सीधे सीएम तक पहुंच गया। जिसके बाद नगरीय विकास विभाग ने फिर से गुप-चुप आदेशों का ही सहारा लिया और वापस पुराने आदेश पर लौट आए, जिसमें उसी टाउनशिप में पांच फीसदी जमीन गरीबों को दी जानी थी।
ये था प्लान : दरअसल शहर के सलीके से विकास के लिए नगरीय विकास विभाग ने 2010 में टाउनशिप पॉलिसी बनाकर इसके हिसाब से काम करने के निर्देश दिए। यह टाउनशिप पॉलिसी 10 हेक्टेयर और इससे ज्यादा जमीन पर बनने वाली टाउनशिप के लिए बनाई गई थी। पॉलिसी के तहत सरकार ने यह तय किया था कि निजी टाउनशिप में गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस/एलआईजी के लिए पांच फीसदी जमीन छोड़ी जाएगी। टाउनशिप में छोड़ी गई 5 फीसदी जमीन में ही गरीबों को मकान बनाकर दिए जाने थे।
ऎसे निकला कांटा : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश के बाद बनी टाउनशिप पॉलिसी-2010 के मुताबिक, टाउनशिप के अंदर 50 से 54 फीसदी निर्मित हिस्सा रखा जाएगा और इसी में पांच फीसदी हिस्सा अफोर्डेबल मकानों के लिए रखा जाना था। पूरी टाउनशिप में गरीबों का यही हिस्सा बिल्डर्स को रास नहीं आया और इसी में बदलाव के लिए कवायद शुरू हो गई। लिहाजा बिल्डर्स/डेवलपर्स को फायदा पहुंचाने के लिए नगरीय विकास विभाग ने पॉलिसी लागू होने के कुछ दिन बाद 2011 में ही संशोधित आदेश जारी कर इन बिल्डर्स को राहत देने का निर्णय कर लिया। नए आदेश में फैसला लिया गया कि टाउनशिप में गरीबों के पांच फीसदी मकान बिल्डर कहीं दूसरी जगह भी दे सकता है। इस फैसले के बाद जम कर टाउनशिप के मानचित्र स्वीकृत होने लगे और महंगी टाउनशिप से गरीबों का कांटा निकल गया।
अब किया दुरूस्त : टाउनशिप में किए बदलाव के बाद जब इस खेल का खुलासा होने लगा और बात सीएमओ तक पहुंची, तो नगरीय विकास विभाग ने फिर से आदेश में बदलाव कर टाउनशिप के उसी आदेश को बहाल रखने का फैसला किया है, जिसमें गरीबों के लिए पांच फीसदी हिस्सा उसी टाउनशिप में दिया जाना था। ऎसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि दो साल के अंदर ही दो बार आदेश बदलने वाला विभाग अपने किस कदम को ठीक ठहरा सकता है? आदेश बदलने वाले आदेश को या फिर वापस पुराने आदेश पर लौटने वाले आदेश को?
आरक्षित रखी जाएगी जमीन :- बिल्डर्स और डवलपर्स की मांग पर टाउनशिप-2010 के अफोर्डेबल कोटे को अन्यत्र देने की छूट दी गई थी अब जनहित में इसको वापस ले लिया गया है। इसके तहत अब टाउनशिप में ही पांच फीसदी जमीन अफोर्डेबल के लिए आरक्षित रखी जाएगी।
- पीके देब, अतिरिक्त मुख्य सचिव, नगरीय विकास विभाग

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