जलसंकट है या द्रौपदी का चीर!
 

बाड़मेर। सीमावर्ती बाड़मेर जिले में पानी की समस्या द्रौपदी के चीर तरह है, जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। गर्मियों की बात छोडिए, हालत यह है कि सर्दियों में भी जिले भर में पेयजल संकट आम बात है। बाड़मेर व बालोतरा शहर भी इस समस्या से अछूते नहीं है। सीमावर्ती गांवों में तो त्राहिमाम-त्राहिमाम की स्थिति बनी रहती है।

जिले भर में जलदाय विभाग का पूरा तंत्र है, लेकिन यह तंत्र नाकाफी है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या करीब 26 लाख हो चुकी है। जलदाय विभाग के ढांचे की बात करें तो करीब 1666 नलकूप व खुले कुएं तथा 2545 हैण्डपम्प प्यास बुझाने का जरिया है। विभागीय आंकड़ों में उक्त नलकूप, खुले कुएं एवं हैण्डपम्प कार्यशील स्थिति में है। स्टेण्डर्ड मापदण्ड के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन करीब 70 लीटर पानी की आवश्यकता रहती है, लेकिन जलदाय विभाग लगभग इसका आधा करीब पैंतीस से चालीस लीटर जल उपलब्ध करवा पा रहा है।

विभागीय अधिकारियों का मानना है कि जिले की लगभग 99 प्रतिशत जनता पेयजल के लिए जलदाय विभाग के तंत्र पर निर्भर है, लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि बाड़मेर शहर में सात दिन में एक बार व अधिकतम दो बार जलापूर्ति होती है। सीमावर्ती गांवों में पखवाड़ा बीत जाने पर भी पानी की आपूर्ति नहीं होती। शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण अंचल तक लगभग सभी जगह परम्परागत कुओं अथवा बेरियों पर आमजन की निर्भरता है।

अंतिम छोर पर बुरा हाल
क्षेत्रीय जलदाय योजनाओं के अंतिम छोर पर आबाद गांवों में पानी की आपूर्ति करने में जलदाय विभाग का तंत्र पूरी तरह नाकाम है। उदाहरण के तोर पर सीमावर्ती गांव बंधड़ा में चार महीने तक पानी की हौदियां सूखी पड़ी रही। इस भयावह स्थिति के बाद ग्रामीण करीब पंद्रह दिन तक हड़ताल पर बैठे रहे, तब जाकर सूखी हौदियों की प्यास बुझी।

शहरों का हाल भी ठीक नहीं
बाड़मेर शहर में पानी के तीन सौ टैंकर आस-पास गांवों के निजी कुओं से पानी भरकर शहर में पानी की आपूूर्ति करते हैं। औसतन प्रतिदिन करीब बारह सौ टैंकर पानी शहर में पहुंचता है। यही स्थिति बालोतरा शहर की भी है।

टिप्पणी करने से इनकार
जिले में पानी की उपलब्धता, आपूर्ति व समस्या के बारे में पूछने पर जलदाय विभाग के अधिशासी निदेशक राकेशकुमार ने टिप्पणी करने से ही इनकार कर दिया। हकीकत यह है कि उनके पास कोई जवाब ही नहीं है।
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