समाज में लैंगिक समानता शिशु एवं महिला स्वास्थ्य के लिए आवश्यक
बाड़मेर
भारत में महिलाओं की सकारात्मक प्रगति के बावजूद भी लैंगिक असमानता पीढियों से अस्तित्व में है, इस असमानता के चलते महिला एवं पुरुष दोनो का जीवन प्रभावित होता रहा है। इस लैंगिक असमानता के कारण भी मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति प्रभावित होती है।
वर्तमान समय में महिलाओं की आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को लेकर सरकार द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाऐं चलाई जा रही है किन्तु इनकों प्रभावित करने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारणों की पहचान और समुदाय स्तर पर इनका सम्पूर्ण विश्लेषण न होना भी लैंगिक असमानता का मुख्य कारण है। जिसके कारण महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण एवं आर्थिक स्थिति में प्रगति आशानुरुप नही हो रही है। राजस्थान के परिपेक्ष्य में यह लैंगिक असमानता बढी हुई मातृ मृत्यु एवं शिशु मृत्यु दर की एक मुख्य वजह है।
लैगिंक समानता को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान कर उन कारणों का विश्लेषण करने हेतु केयर इण्डिया एवं केयर्न इण्डिया लिमिटेड के सहयोग से संचालित रचना परियोजना के अन्तर्गत तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में महिला सशक्तिकरण हेतु आवश्यक सभी पहलूओं पर चर्चा की गई।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए केयर इण्डिया कि लैंगिक विविधता और समानता,तकनीकी विशेषज्ञ डाॅ. रेणु गोलवालकर ने बताया कि पितृ सत्तात्मक ढांचे को बनाने एवं उसको बरकरार रखने में मदद करने वाली भावना न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों के जीवन पर भी भारी पड़ सकती है। अतः परिवार के महत्वपूर्ण फैसले लेने की जिम्मेदारी केवल पुरुषों की न होकर संयुक्त रुप से होनी चाहिये।
इस तीन दिन की कार्यशाला में रचना परियोजना के परियोजना अधिकारियों को स्वास्थ्य, पोषण एवं आर्थिक मुद्दों पर संवेदनशील एवं सशक्त किया गया जिससे वे परियोजना क्षेत्र में अपने कार्यां को बखूबी अंजाम दे सकें। जिसके परिणामस्वरुप समुदाय महिला सशक्तिकरण में अपना योगदान प्रदान कर सकें। इस हेतु समुदाय के अगुआओं को जिम्मेदारी वहन करनी होगी।
रचना परियोजना के परियोजना प्रबन्धक दिलीप सरवटे ने कार्यशाला के बारे में बताया की लैंगिक भेदभाव समाज की महत्वपूर्ण समस्या बनी हुई है। यह भेदभाव महिलाओं के स्वास्थ्य, आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को प्रभावित करती है एवं परिणाम स्वरूप शिशु मृत्यु एवं मातृ मृत्यु पर विपरीत प्रभाव डालती है।
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