राजस्थानी भाषा के पक्ष में भोजपुरी और भोटी भाषाओं से सम्बद्घ राज्यों के सांसदों की बैठक
जयपुर।
केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा है कि देश-विदेश में करीब 40 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी, भोजपुरी और भोटी भाषाओं को मान्यता मिलने से राष्ट्रभाषा हिन्दी को सम्बल मिलेगा।
गडकरी गुरूवार सायं नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा मान्यता समिति द्वारा राजस्थानी, भोजपुरी एवं भोटी भाषाओं से सम्बद्घ राज्यों के सांसदों की संयुक्त बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
बैठक में इन राज्यों के करीब 45 सांसदों ने भाग लिया जिनमें केंद्रीय पंचायतराज राज्यमंत्री निहालचंद, लोकसभा में सत्ता दल के मुख्य सचेतक अर्जुनराम मेघवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद जगदम्बिकापाल, उत्तर-पूर्व दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी, लद्दाख के सांसद थम्पसन छवंग, मंूगेर (बिहार) की सांसद श्रीमती वीणा देवी, उत्तर प्रदेश से सांसद श्रीमती अजूं बाला, राजस्थान से ओम बिरला, पी.पी. चौधरी, कर्नल सोनाराम, रामचरण बोहरा, गजेंद्र सिंह शेखावत, सी.पी. जोशी, सी.आर. चौधरी, श्रीमती संतोष अहलावत आदि प्रमुख थे। राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष के.सी. मालू ने सभी का स्वागत किया। बैठक में सांसदों ने एक संयुक्त महासंघ बनाकर इन भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने का निर्णय लिया ।
गडकरी ने कहा है कि आंचलिक भाषाओं के विकास से न केवल राष्ट्रभाषा हिन्दी को ताकत मिलेगी वरन् देश की सांस्कृतिक पहचान को भी बल मिलेगा। उन्होने कहा कि विविधताओं में एकता की यह अनूठी विशेषता भारत को अन्य देशों से भिन्न एवं अद्भुत छवि वाले देश के रूप मे ंपेश करती है।
उन्होने कहा कि भाषाओं के विकास के बिना हम अपनी मूल संस्कृति परम्पराओं तीज-त्योहारो आदि को नहीं जान सकते। अत: राजस्थानी, भोजपुरी और भोटी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर संवैधानिक भाषा दर्जा दिया जाना उचित होगा।
बैठक में केंद्रीय पंचायतराज राज्यमंत्री निहालचंद ने कहा कि करीब दस करोड़ लोगों द्वारा राजस्थानी बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा को बहुत पहले ही मान्यता मिलनी चाहिए थी। राजस्थानी भाषा का साहित्य, हिन्दी साहित्य कोष का बड़ा हिस्सा है। मीरा का भक्ति काल और पृथ्वीराज रासों की वीरगाथा काल इससे भरा पड़ा है। राजस्थानी को मान्यता मिलने से राष्ट्रभाषा हिन्दी को अधिक मजबूती मिलेगी।
बैठक के प्रारंभ में लोकसभा में सत्ता दल के मुख्य सचेतक एवं सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि राजस्थानी, भोजपुरी और भोटी देश-विदेश में करीब 40 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। देश के एक चौथाई लोग इन भाषाओं से जुड़े हुए है। अत: इन करोड़ों वर्ष पुरानी, विशाल क्षेत्र में बोली जाने वाली और अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त इन भाषाओं को मान्यता प्राप्त करने का पूरा हक है।
उन्होने बताया कि राजस्थानी, भोजपुरी एवं भोटी भाषाएं हजार वर्ष से भी प्राचीन है जिनमें ज्ञान का विपुल भंडार और प्रकाशित एवं अप्रकाशित साहित्य मौजूद है। इन भाषाओं में दर्शन, विज्ञान, कला, संगीत, आयुर्वेद, ज्योतिष, धर्म, संस्कृति, लोक साहित्य कविता, व्याकरण आदि ग्रन्थ ज्ञान का विशाल स्रोत है। ये भाषाएं पाकिस्तान, अमेरिका, यू.के., यूरोप, मीडिल ईस्ट, नेपाल, मारीशस आदि देशों में भी बोली जाती है।
मेघवाल ने बताया कि राजस्थानी भाषा को नेपाल में मान्यता प्राप्त है वहां के केबिनेट मंत्री श्री हेमराज तातेड़ ने राजस्थानी में पद की शपथ ली है। इस प्रकार भोजपुरी मोरोशिस, गुयाना, फिजी, सूरीनाम आदि 17 देशों में बहुतायत से प्रचलित है। इसके अलावा 'भोटी भाषाÓ भूटान की आधिकारिक भाषा है एवं तिब्बत, नेपाल के अलावा पूरे हिमालय के तराई क्षेत्रों में प्रचलित है और इसकी 'पाली-लिपिÓ मेंं जैन एवं बौद्घ ग्रन्थ भी सुरक्षित है।
उन्होने बताया कि इन तीनों भाषाओं को मान्यता दिलाने के प्रयास लम्बे समय से चल रहे है और संसद एवं संसद से बाहर इसकी बराबर मांग होती आई है। मेघवाल ने बताया कि डॉ. करणी सिंह (बीकानेर), डॉ. एल.एम. सिंघवी (जोधपुर), गिरधारी लाल भार्गव (जयपुर), गजसिंह (जोधपुर), रासासिंह रावत (अजमेर), कर्नल सोनाराम (बाड़मेर), ओंकार सिंह लखावत (अजमेर), श्रीमती चंद्रेश कुमारी कटौच (जोधपुर), डॉ. करण सिंह यादव (अलवर) आदि के साथ ही मध्यप्रदेश से सांसद रहे सुप्रसिद्घ कवि श्री बालकवि बैरागी भी कई बार संसद में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की पूरजोर मांग उठा चुके है।
बैठक में जगदम्बिकापाल ने कहा कि इन तीनो भाषाओं को विदेशों में मान्यता मिली हुई, लेकिन हमारे देश में अभी तक मान्यता नहीं मिलने से देश की करीब आधी आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा से जुड़े लोग सरकार की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे है। लद्दाख के सांसद थपसन छवंग ने कहा कि भोटी पहाड़ी संस्कृति की संवाहक है, जिसका विपुल साहित्य भी है। पर्वतीय संस्कृति को विलुप्त होने से बचाने के लिए इसे मान्यता देनी जरूरी है।
बैठक में सांसद श्रीमती बीना देवी, श्रीमती अंजुबाला, कर्नल सोनाराम, ओम बिरला, गजेन्द्र सिंह शेखावत, रामचरण बोहरा, पी.पी. चौधरी, श्रीमती संतोष अहलावत, सी.आर चोधरी, सी.पी. जोशी के अलावा भोजपुरी भाषा समिति के अध्यक्ष अशोक सिंह, राजस्थान के डॉ. अमरसिंह राठौड़ आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने भोजपुरी गीत गाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया।
इस मौके पर दिल्ली में अप्रवासी राजस्थानी के प्रतिनिधि संगठन राजस्थान संस्था संघ के अध्यक्ष सुरेश खण्डेवाल, तेरापथ समाज के गोविन्द बाफना, अणुव्रत न्यास के अध्यक्ष सम्पत नाहटा, रचनात्मक मंच के पवन दोषी आदि भी मौजूद थे।
राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष के.सी मालू ने बताया कि राजस्थानी को केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन एवं पुरस्कारों के लिए फरवरी, 1971 से ही मान्यता प्राप्त है। उन्होने भावी पीढ़ी को सांस्कृतिक मूल्यों के पतन से बचाने, युवाओं को रोजगार और प्रदेश की अस्मिता की रक्षा के लिए राजस्थानी सहित भोजपुरी और भोटी भाषाओं को मान्यता प्रदान किया जाना समय की मांग है।

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