18 दिसंबर को दिल्ली में लग जाएगा राष्ट्रपति शासन!
नई दिल्ली।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है। यहां सबसे ज्यादा 32 सीटें भाजपा को मिली हैं लेकिन सरकार बनाने के लिए कुल 36 सीटें चाहिए। ऎसे में उपराज्यपाल नजीब जंग के सामने एक अजीबोगरीब स्थिती पैदा हो गई है।
उप राज्यपाल ने भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्षवर्धन को सरकार बनाने पर चर्चा के लिए बुलाया है। अगर हर्षवर्धन सरकार बनाने से इंकार कर देते हैं और कहते हैं कि वे बहुमत साबित करने में असमर्थ हैं तो जंग दूसरी बड़ी पार्टी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बुलाएंगे।
आप पार्टी को चुनाव मेें 28 सीटें मिली हैं अगर वह भी गठबंधन करके सरकार बनाने से मना कर देती है। उपराज्यपाल के देश की राजधानी में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा।
पिछली सरकार का समय समाप्त हो जाएगा
पिछली विधानसभा का गठन 18 दिसंबर 2008 को हुआ था और यह अपने पांच साल 18 दिसंबर को पूरे कर रही है। संविधान के मुताबिक विधानसभा के पांच साल पूरे होने तक नई सरकार का गठन हो जाना चाहिए। अगर कोई भी पार्टी बहुमत में नहीं आती है और सरकार बनाने में असमर्थ होती हैं तो उपराज्यपाल की सिफारिश से राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है।
संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति शासन छह महीने से ज्यादा समय तक नहीं रहता। छह महीने पूरे हो जाने के बाद अप्रेल-मई 2014 में लोकसभा चुनाव के साथ दिल्ली में दोबारा से विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन से रूक सकता है विकास
एक बार राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है तो उपराज्यपाल राज्य सरकार के संवैधानिक और कार्यकारी अधिकारी बन जाते हैं। राज्य के विभागों के चलाने के लिए उपराज्यपाल कुछ सलाहकारों का एक समूह नियुक्त कर सकता है जो कि मंत्रीमंडल की तरह कार्य करेंगे।
आमतौर पर ये सलाहकार वरिष्ठ नौकरशाह और रिटायर नौकरशाह होते हैं। राष्ट्रपति शासन के दौरान कोई बड़ा विकास कार्य नहीं होगा केवल सरकार के हर रोज के काम निपटाए जाएंगे। राष्ट्रपति शासन दिल्ली के विकास को रोक सकता है।
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