प्रभु की आज्ञा पालन से मोह का जहर नष्ट हो जाता है- साध्वी प्रियरंजनाश्री

बाड़मेर। 
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. ने चातुर्मास के तेरहवें दिन अपने प्रवचन में कहा कि आज तक जीवन में आश्रवरूपी छिद्रों से कर्मों का आगमन होता था अब उसका त्याग करके संवर के द्वारा उन सभी छिद्रों को बंद कर दिया जाये तो निर्जरा होने पर आत्मा का मोक्ष हो जाता है।
परमात्मा की आज्ञा मोक्ष का ही कारण है। इस दुनिया में सर्प का विष उतारने वाले तो बहुत हैं और ऐसे मंत्र-तंत्रों का भी टोटा नहीं है। किन्तु आत्मा पर चढ़े मोहरूपी विष को उतारने का श्रेष्ठ मंत्र है प्रभु की आज्ञा।
प्रभु की आज्ञा ही हमारे लिए सर्वोपरि है क्योंकि यही मोहरूपी विष को उतारती है। अनादि काल से संसार में भटकाने वाला तत्व ही मोह है। इस मोह ने आज तक बड़े-बड़े तत्वज्ञानी महापुरूषों को भी संसार में भटका दिया है। अनेक भवों की परम्परा को बढ़ाने वाला है। मोह और मोह रूपी जहर को उतारने की रामबाण औषधि है परमात्मा की आज्ञा।
मुनि महात्माओं का सम्पूर्ण जीवन जिनाज्ञा के आधार पर ही चलता है। भगवान की आज्ञा का पालक साधु ही श्रेष्ठतम साधु है। ऐसे प्रभु के आज्ञाकारी मुनि जीवन पर दृष्टिपात करो। मोह का जहर उतारने की प्रक्रिया वहां से आपको दृष्टिगोचर होगी। मुनिवरों के लिए भगवान ने आज्ञा प्रदान की है कि ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, वैयावच्च या तपादि के कारण आहार करें।
इन्द्रियों को पोषने के लिए आहार करने की अनुमति नहीं है। आहार निर्दोष मिला तो संयम पुष्टि और निर्दोष नहीं मिला तो तपोवृद्धि हुई। समभाव में रहना हर्ष या शोक न करें। प्रभु की आज्ञा पालन से मोह का जहर नष्ट हो जाता है। दोष की बहुलता से जीवन महान् नहीं बनता है। क्षणिक सुख की प्राप्ति के लिए उत्तम जीवन की कीमती पलों का बलिदान देना कोई बुद्धिमानी नहीं है। सुख की पसंदगी के लिए गुणों को गौण बताना कोई होशियारी नहीं है। दुःखों से बचने के लिए दोषों का सेवन करना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है।
सत्व के विकास तो दोषों को छोड़ने से दुःखों को स्वीकारने से होगा। गुण प्राप्ति के लिए सुखों को छोड़ने की तैयारी करनी पड़ेगी।
एक गुणानुरागी के गुण को आत्मसात कर लो तो तुम्हारा सम्पूर्ण जीवन सही सलामत और स्वस्थ बन जायेगा। गुणानुरागी का गुण सच्ची भूख के समान है।
अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण का कारण सच्चे अर्थ में गुण का राग पैदा नहीं होना है। स्वार्थ साधने के लिए गुणवान बनने का पुरूषार्थ इस जीवन ने जरूर किया है। परन्तु केन्द्र में जगत् का कुछ स्वार्थ था। गुण प्राप्ति हेतु अन्दर से सुषुप्त पड़ी आत्मा में सत्व पैदा करने का पुरूषार्थ करना है।
आज प्रवचन में नगर परिषद् सभापति उषा जैन उपस्थित थी।

महिलाओं का शिविर सम्पन्न-
स्थानीय आराधना भवन में पूज्य साध्वीवर्या प्रियरंजनाश्री म.सा. की निश्रा में, डाॅ. प्रियदिव्यांजनाश्री म.सा. एवं साध्वी प्रियशुभांजनाश्री म.सा. के सानिध्य में महिलाओं का शिविर सम्पन्न हुआ।
शिविर को सम्बोधित करते हुए साध्वी प्रियरंजनाश्री ने माध्यास्थ, प्रमोद, कारूण्य आदि भावना को समझाते हुए कहा कि धर्म को जानकर आचरण में लाकर जीवों के प्रति दया के भाव रखें। लक्ष्य निर्धारण करना है। स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने के लिए तथा साधना को सफल बनाने के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिये।
ब्रह्म मुहूर्त में चिंतन करने के लिए मैं कौन हूं, कहां से आई, कहां जाना है के साथ ही महापुरूषों का, महान् सतियों का भी स्मरण करना चाहिये।
साध्वी डाॅ. प्रियदिव्यांजनाश्री ने सूर्य स्वर, सुषुम्ना स्वर की जानकारी दी। उन्होनें कहा कि प्रत्येक क्रिया प्राणिधान पूर्वक होनी चाहिये। दर्शनाचार का पालन करते हुए मंदिर में जाना चाहिये, आसातना से बचना चाहिये एवं झूठे मुंह मंदिर नहीं जाना चाहिये।
साध्वी प्रियशुभांजनाश्री ने मंदिर जाने की विधि, आसातना की विधि दोष मुक्त विधि के बारे में बताया। उन्होनें कहा कि सदैव समता भाव से मंदिर जाना चाहिये। जिन मंदिर की सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिये। घर से पूजन सामग्री साथ लेकर जाना चाहिये। मंदिर के द्रव्यों का उपयोग नहीं करना चाहिये। सदैव स्व द्रव्य से पूजन करना चाहिये।
शिविर में डाॅ. ललिता मेहता ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शिविर में महिलाओं की भारी उपस्थिति रही। शिविर समाप्ति के बाद संघ की ओर से प्रभावना दी गई।
इस अवसर पर भूरचन्द संखलेचा, सोहनलाल अरटी, बाबुलाल तातेड़, जगदीश बोथरा, पारसमल मेहता, खेतमल तातेड़ ने शिविर में अपनी सेवायें दी।


आज के आयोजन-
प्रातः 6 से 7 बजे स्वाध्याय, विशेष प्रवचन ‘जीवन में शांति और समाज में क्रांति’ प्रातः 9 से 10.30 बजे तक, दोपहर 2 से 4 बजे तक बच्चों के शिविर का आयोजन किया जायेगा।

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