महान दाशर्निक और विचारक गुरू नानक देव 


अनिता महेचा 

कार्तिक पूर्णिमा सिख समुदाय का सबसे बडा पवित्र और धार्मिक पर्व है। इसे गुरू पूर्णिमा भी कहते है। इसी दिन सिखों के प्रथम गुरू नानक देव जी का इस वसुधरा पर अचतरण हुआ था। सिख समुदाय के लोग इस पर्व को बडे हर्षोल्लास तथा श्रद्घा के साथ मनाते है। 
गुरूनानक जी का जन्म 1468 ई. में कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब के शोखपुरा जिले के तलवंडी नामक गॉव में हुंआ था। यह गॉव लाहौर से पैसंठ किलोमीटर की दूरी पर उत्तरपिश्चम में स्थित है। अब इसका नाम गुरूनानक के नाम पर ननकाना साहब हों गया है। यह स्थान अब पाकिस्तान में चला गया है, फिर भी प्रत्येक वर्ष गुरू पुर्णिमा के अवसर पर हजारों की तादाद में सिख लोग गुरू नानक जी के जन्म स्थान के दीदार करने के लिए वहॉ जाते है और अपने आपको धन्य मानते है। 
गुरू नानक जी के पिता का नाम कालूचंद खत्री था और माता का नाम तृप्ता एवं उनकी बड़ी बहन का नाम नानकी जी था। इनके पिता पटवारी थे। इनका लालनपालन बडे प्यार के साथ किया गया। इनके मातापिता चाहते थे कि नानक बडे होकर परिवार का कारोबार संभालें। परन्तु नानक शौशव अवस्था से ही साधुसंतों की तरह उठतेबैठते और वैसी ही चर्चाए करने लगे थे। 
आठ वर्ष की आयु होने पर नानक को पने के लिए पाठशाला में भेजा गया। पर इनका दिल पनेलिखने में नही लगा। वह एकांत में बैठकर ईश्वर का ध्यान करने लगे और साथ ही साथ भजनकीर्तन करने तथा गाने भी लगे। ग्यारह वर्ष की आयु में इन्हे एक मौलवी कुतूबद्धीन के पास फारसी भाषा पने के लिए भेजा गया। मौलवी ने कहा कहो ’आलिफ’ तब शार्गिद नानक ने कहा ’’ आलिफ से अल्लाह, सबका सिरजन हार।’’ मौलवी साहब हैरानी में पड गये और फरमाया ऐसे शार्गिद को पाना आसान कार्य नही है। इस प्रकार उन्होने खुद ही ज्ञान हासिल किया। अट्ठारह साल की आयु होने पर पिता ने उन्हें गृहस्थ जीवन में ालने के लिए बटाला के मूलचंद खत्री की बेटी सुलखनी से अनकी शादी कर दी। उनके श्रीचंद्र और लक्ष्मीचन्द्र नाम के दो पुत्र हुए। परन्तु नानक का गृहस्थ जीवन में मन नही रम सका। वे आध्यात्मिक चिंतनमनन में लीन रहने लगे। तब इनके पिता वे आध्यात्मिक चिंतनमनन में लीन रहने लगे। तब इनके बहनोई ने उन्हे अपने दामाद के पास सुलतानपुर भेज दिया। इनके बहनोई ने उन्हे सरकारी नौकरी में मोदी के पद पर नियुक्त करवा दिया। जैसेतैसे करके उन्होंने नौकरी में सत्रह वर्ष व्यतीत किये। इस दौरान प्राप्त होने वाली आय को वे अक्सर साधुसंतों गरीबो और जरूरतमंदो में बॉट देते थे। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन नदी मे नहातें हुए इनका साक्षात्कार भगवान के साथ हुआ और तीन दिन इन्होने नदी में ही व्यतीत किये। तब से इनकी लौ ईश्वर के संग लग गई। गुरूनानक देव जी के दो श्षि्य थे मरदाना और बाला। इनको साक लेकर उन्होंने ऐहमनाबाद , मुल्तान, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार ,मथुरा, गौरखमता , वृदांवन, बनारस, काशी ,गयाजी ,पटना, ाका आगरा ,बंगाल ,आसाम, आदि धार्मिक स्थानों पर प्रेम एवं शांति के उपदेश सरल एवं मधूर भाषा में दिए। उन्हानें, जगन्नाथ, थानेसर, सुल्तानपुर की यात्राऍं की। गुजरात के जूनागं ,कच्छ, पाटन, पोरबन्द, और द्वारका की भूमि को भी इन्होने पवित्र किया। भ्रमण के दौरान उन्होने हजारों लोगों को अपने उपदेशो तथा प्रवचनों से मत्रमुग्ध किया। गुरूनानक जी का मुल मंत्र था प्रभु एक है, उसने ही हम सबका निर्माण किया है। ईश्वर सत्य स्वरूप है। सबको सद्कर्म करने चाहिए ताकि ईश्वर के सम्मुख हमें शर्मिन्दा न होना पडे। इनके उपदेशों से प्रभावित होकर हजारों की संख्या में लोग इनके अनुयायी बन गये। इनका पहला शिष्य तलवंडी का शासक राय बुलार बनां परिणाम स्वरूप वे सिख धर्म की स्थापना करने में कामयाब रहे। गुरूनानक जी वर्मा, लंका, बगदाद, मक्का, मदीना आदि देशों में भ्रमण कर चालीस वर्ष तक अपने धर्मोपदेशों से लोगों को प्रभावित करते रहे। उनकी नजर में सभी धर्म समान थे। जब वे मक्का की यात्रा पर थे। जहॉ रात्रि में वे काबा को और पॉव करके सोये हूए थे। इस स्थिति में उन्हे सोया हुआ देखकर वहॉ के मुल्ला बेहद क्रोधित हो गए। तब नानक जी ने शांत स्वर में कहा’ जिस तरफ खुदा न हो उस और मेरे पॉव कर दो’। मुल्ला ने गुस्से में आकर उनसे पॉव दूसरी दिशा में घुमा दिये। उसने देखा कि जिधर पॉव घुमाता है उधर ही काबा के दीदार होते है। आखिर में वह थक हार कर चला गया। इस प्रकार गुरूनानक देव जी ने साबित कर दिया कि ईश्वर सब जगह मौजूद है। विभिन्न स्थानों की यात्राऍ करने के पश्चात वे करतापुर में आकर रहने लगे। जहॉ उन्होने 18 वर्ष गुजारे। यहॉ इन्होने एक गृहस्थ और पथ प्रदशर्क के रूप में जीवन व्यतीत किया। इस समय उन्होने दो कार्य मुख्य रूप से किये। एक तो लंगर लगाना। इसके माध्यम से वे विनम्रता, समानता और भाईचारे की भावना कायम करने में सफल रहे। इस लंगर में बिना किसी भेदभाव, जातिपॉति उनका दूसरा कार्य सेवा था। सेवा संगत मे अनेक प्रकार के कार्य जैसे बर्तनों को साफ करना, आटा पीसना, पानी भरना, भोजन बनाना इत्यादि किये जाते हैं। उन्हें अपने अंतिम समय में आभास होने पर उन्होने अपने अत्यन्त प्रिय और सेवाभावी शिष्य लहना को अंगद के नाम से अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सन 1539 को उन्होने अपनी नश्वर को त्याग दिया। गुरू नानक देव जी के पश्चात सिखों के नौ गुरू हुए। दसवें गुरू गोविंद सिंह जी थे। गुरू गोविंद सिंह जी ने गुरूनानक देव जी सहित अन्य सभी गुरूओं के उपदेशों को संकलित कर ’गुरू ग्रंथ साहब’ की रचना की। उसे गुरू की गद्यी पर आसीन कर दिया। तभी से ही ’गुरू ग्रंथ साहब’ को ही गुरु का दर्जा दिया जाता है। उसकी पूजाअर्चना की जाती है।ं प्रत्येक गुरू द्वारे में इसे अत्यन्त मानसम्मान के साथ रखा जाता है और हर रोज इसका पाठ होता है। 
गुरू नानक देव जी ने देश को राष्ट्रीय एकता का सुन्दर पाठ पाया। उन्होने बाहरी आडम्बर त्याग करके हदय से मानव जाति से प्रेम करना सिखाया। उन्होने जातिपॉति का विरोध करते हुए सभी धर्मों की समानता पर बल दिया। ईश्वर से प्रेम करने की शिक्षा दी। 
गुरू नानकदेव जी को उत्पन्न हुए आज पॉच सौ साल से अधिक समय बीत गया है। इस दरमियान उन्होने भारतीय इतिहास पर अपनी अतिट छाप छोडी है। आज सारे संसार में उनका नाम बडे आदर और श्रद्वा के साथ लिया जाता है। गुरू नानक देव जी के 543 वें प्रकाश पर्व के अवसर पर हम उनके उपदेशों को स्मरण करतें हुए उनके दिखायें पथ पर चलकर उन्हे सच्चे श्रद्वा सुमन आर्पित कर सकतें है। 

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
HAFTE KI BAAT © 2013-14. All Rights Reserved.
Top