माता पिता आगे आने लगे अपने भरणपोषण के हक की प्राप्ती के लिये
भरतपुर
राज्य में अगस्त 2008 से लागू मातापिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम के तहत जिले में गत 8 माह पूर्व जहॉ एक भी प्रकरण दर्ज नहीं हुआ वहीं 8 माह की इस अवधि में 40 से भी अधिक प्रकरण न केवल उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में गठित अभिकरणों में दर्ज किये गये अपितु इस अवधि में 27 प्रकरणों को निर्णित कर वृद्ध मातापिता को उनके भरण पोषण का अधिकार उन्हें दिलाया गया। संभवतया इस अधिनियम के तहत वृद्धजनों को उनका हक दिलवाने के इस संवेदनशील मामले में जिला पूरे प्रान्त में अग्रणी स्थान पर है।
समाज में संयुक्त परिवारों में हो रहे तेजी से बिखराव और उनके स्थान पर एकल परिवारों के प्रति युवा पी में ब रहे रूझान एवं समाज में बते भौतिकवाद के प्रभाव का ही परिणाम है कि आज अधिकांश परिवारों में वृद्धजन अपने ही परिजनों से किसी न किसी रूप में उपेक्षित महसूस करने लगे हैं और बहुत से वृद्धजनों को तो न केवल परिवार में ही प्रताडित होना पडता अपितु अपने खानपान, कपडों एवं ईलाज के लिये भी परेशानी का सामना करना पडता है। जिला कलक्टर श्री गौरव गोयल की पहल पर गत वर्ष 21 अक्टूबर को महाराजसर निवासी ऊदल सिंह मीना एवं लकवाग्रस्त उनकी पत्नि का प्रकरण उपखण्ड मजिस्ट्रेट भरतपुर के न्यायालय में पहला प्रकरण दर्ज किया गया और न्यायालय द्वारा प्रार्थी एवं उनके सरकारी सेवा में सेवारत तीन पुत्राों को सुनने के पश्चात न्यायालय ने तीनों पुत्राों द्वारा अपने माता पिता के खाते में प्रतिमाह कुल 8000 रूपये उनके भरण पोषण हेतु जमा कराने का निर्णय पारित किया ।
जिले में इस अधिनियम के तहत वृद्ध माता पिता को मिले इस भरण पोषण के हक संबंधी समाचार के मीडिया में आने का परिणाम रहा कि जिले के अन्य ऐसे वृद्धजन जिन्हें भी इस दौर से गुजरना पड रहा था वे भी धीरेधीरे अपनी सामाजिक व पारिवारिक झिझक को छोड अपना हक प्राप्ती हेतु आगे आने लगे । जिला कलक्टर श्री गोयल द्वारा भी इन संवेदनशील प्रकरणों को शीघ्रातिशीघ्र निस्तारित करने हेतु दिये गये निरन्तर प्रोत्साहन के परिणाम स्वरूप गत 8 माह की इस छोटी सी अवधि में ही जिले के विभिन्न उपखण्ड न्यायालयों में अधिनियम के तहत 40 से भी अधिक प्रकरण दर्ज किये गये अपितु उनमें से 27 का निस्तारण करते हुये वृद्धजनों को उनके भरण पोषण हेतु पुत्राों से निश्चित राशि उनके खातों में प्रतिमाह जमा कराने के आदेश भी पारित किये गये । यही नहीं न्यायालयों द्वारा अपने निर्णयों में संबंधित पुलिस थानाधिकारी को भी पाबन्द किया गया कि वे नियमित संबंधित परिवारों पर निगरानी रख सुनिश्चित करें कि न्यायालय के आदेशों की पालना हो और वृद्ध माता पिता को उनके परिजन किसी रूप में परेशान न करें। जिले में सर्वाधिक ऐसे प्रकरण भरतपुर शहर के सामने आये जो इस बात का प्रमाण है कि ग्रामीण क्षेत्राों की बजाय शहरी क्षेत्राों में यह समस्या अधिक है।
न्यायालयों द्वारा न केवल ऊदल सिंह को उसका हक दिलवाया अपितु भरतपुर की ही श्रीमती राजवती को पुत्रा से प्रतिमाह 6 हजार रूपये , भरतपुर के ही शिवराम को तीन पुत्राों से 6 हजार रूपये , श्रीमती चिरोंजी को अपने पति से 3 हजार रूपये प्रतिमाह दिलाने का निर्णय पारित किया गया । इसी प्रकार श्रीमती शिवदेई को प्रतिमाह 2 हजार , हरभान सिंह,सद्दन ,नत्थी लाल,कुम्हेर के श्यामलाल व बच्चू सिंह को प्रतिमाह 11 हजार रूपये की राशि भरण पोषण के रूप में प्राप्त करने का हक मिला वहीं नदबई के प्रार्थी छीतर को अपने तीन पुत्राों से 6 हजार , अंगूरी देवी को दो पुत्राों से 1 हजार , वैर के रामसिंह को 1500 रूपये एवं वैर के ही वृद्ध काईरा को अपने पुत्राों से प्रतिमाह 2 हजार रूपये की राशि भरण पोषण हेतु प्राप्त करने का हक दिलाया गया। निश्चिय ही इस अधिनियम के प्रति जिले में आ रही जागरूकता से जहॉ उपेक्षित वृद्धजन अपनी झिझक छोड तेजी से अपने हक प्राप्ती हेतु आगे आने लगे हैं वहीं परिजन भी अपने वृद्ध माता पिता के प्रति संवेदनशील व्यवहार करने हेतु प्रेरित होने लगे हैं।
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