अपनों के वार भी पड़ेंगे झेलने
नई दिल्ली। संसद का बजट सत्र आज से शुरू होने जा रहा है, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए यह आसान नहीं होगा। उसके समक्ष कई चुनौतियां होंगी। विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हमले से बचाव के अतिरिक्त उसे राज्यों के अधिकारों के हनन तथा महंगाई जैसे मुद्दों पर सहयोगी दलों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।संसद के बजट सत्र की शुरूआत सोमवार को दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी। बजट सत्र दो चरणों में हो रहा है। पहले चरण के तहत 12 मार्च से 30 मार्च के बीच संसद की कार्यवाही चलेगी, जबकि दूसरे चरण में इसकी कार्यवाही 24 अप्रेल से 22 मई तक चलेगी। रेल बजट 14 मार्च को पेश होगा, जबकि 15 मार्च को आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट और 16 मार्च को आम बजट पेश होगा।बजट सत्र के प्रथम चरण की छोटी अवधि को लेकर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पहले ही सदन की अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अपनी शिकायत दर्ज करा चुकी हैं। उनका कहना है कि चर्चा के लिए बहुत कम वक्त है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने हालांकि आवश्वस्त किया है कि विपक्ष चाहे जिस भी मुद्दे पर चर्चा कराना चाहे, सरकार चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन सरकार की राह आसान नहीं हैं।उसके समक्ष गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट रखने की चुनौती भी होगी, खासकर ऎसे में जबकि केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की एक अहम भागीदार तृणमूल कांग्रेस के तेवर लगातार बगावती बने हुए हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता वाली तृणमूल पहले भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल विधेयक, खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी, महंगाई और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) के गठन के प्रस्ताव पर विरोध जता चुकी है। पार्टी ने संसद के मौजूदा सत्र में भी वित्तीय मुद्दों पर अपनी रणनीति को लेकर बैठक की है।इधर, कांग्रेसी व गैर-भाजपाई तीसरे मोर्चे के गठन की अटकलें भी लगाई जाने लगी है। पंजाब में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे प्रकाश सिंह बादल द्वारा 14 मार्च को और समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा 15 मार्च को अखिलेश यादव के शपथ-ग्रहण में ममता को आमंत्रित किए जाने से इस सम्बंध में अटकलों का बाजार और गर्म हो गया है।ममता ने हालांकि शपथ ग्रहण समारोहों में शिरकत करने से इनकार कर दिया है लेकिन उनके तेवरों को देखकर संकेत केंद्र सरकार के पक्ष में नहीं नजर आ रहे, जबकि विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद तृणमूल पर उसकी निर्भरता बढ़ गई है। सत्र के दौरान विपक्षी दल भी सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं। विपक्षी दल कालेधन व महंगाई के मुद्दे को प्रमुखता से उठा सकते हैं।केंद्र सरकार को यादवों की तिकड़ी से भी निपटना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश चुनाव में सपा की शानदार जीत के साथ मुलायम सिंह यादव अधिक ताकतवर बनकर उभरे हैं। साथ ही उन्होंने केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होने के संकेत भी दे दिए हैं। सरकार को घेरने में उन्हें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष शरद यादव का भी साथ मिल सकता है। ज्ञात हो कि यादव तिकड़ी 15वीं लोकसभा में विभिन्न मुद्दों पर एकजुट रही है और सरकार के खिलाफ एक दबाव समूह के रूप में काम कर रही है।
नई दिल्ली। संसद का बजट सत्र आज से शुरू होने जा रहा है, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए यह आसान नहीं होगा। उसके समक्ष कई चुनौतियां होंगी। विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हमले से बचाव के अतिरिक्त उसे राज्यों के अधिकारों के हनन तथा महंगाई जैसे मुद्दों पर सहयोगी दलों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।संसद के बजट सत्र की शुरूआत सोमवार को दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी। बजट सत्र दो चरणों में हो रहा है। पहले चरण के तहत 12 मार्च से 30 मार्च के बीच संसद की कार्यवाही चलेगी, जबकि दूसरे चरण में इसकी कार्यवाही 24 अप्रेल से 22 मई तक चलेगी। रेल बजट 14 मार्च को पेश होगा, जबकि 15 मार्च को आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट और 16 मार्च को आम बजट पेश होगा।बजट सत्र के प्रथम चरण की छोटी अवधि को लेकर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पहले ही सदन की अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अपनी शिकायत दर्ज करा चुकी हैं। उनका कहना है कि चर्चा के लिए बहुत कम वक्त है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने हालांकि आवश्वस्त किया है कि विपक्ष चाहे जिस भी मुद्दे पर चर्चा कराना चाहे, सरकार चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन सरकार की राह आसान नहीं हैं।उसके समक्ष गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट रखने की चुनौती भी होगी, खासकर ऎसे में जबकि केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की एक अहम भागीदार तृणमूल कांग्रेस के तेवर लगातार बगावती बने हुए हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता वाली तृणमूल पहले भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल विधेयक, खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी, महंगाई और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) के गठन के प्रस्ताव पर विरोध जता चुकी है। पार्टी ने संसद के मौजूदा सत्र में भी वित्तीय मुद्दों पर अपनी रणनीति को लेकर बैठक की है।इधर, कांग्रेसी व गैर-भाजपाई तीसरे मोर्चे के गठन की अटकलें भी लगाई जाने लगी है। पंजाब में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे प्रकाश सिंह बादल द्वारा 14 मार्च को और समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा 15 मार्च को अखिलेश यादव के शपथ-ग्रहण में ममता को आमंत्रित किए जाने से इस सम्बंध में अटकलों का बाजार और गर्म हो गया है।ममता ने हालांकि शपथ ग्रहण समारोहों में शिरकत करने से इनकार कर दिया है लेकिन उनके तेवरों को देखकर संकेत केंद्र सरकार के पक्ष में नहीं नजर आ रहे, जबकि विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद तृणमूल पर उसकी निर्भरता बढ़ गई है। सत्र के दौरान विपक्षी दल भी सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं। विपक्षी दल कालेधन व महंगाई के मुद्दे को प्रमुखता से उठा सकते हैं।केंद्र सरकार को यादवों की तिकड़ी से भी निपटना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश चुनाव में सपा की शानदार जीत के साथ मुलायम सिंह यादव अधिक ताकतवर बनकर उभरे हैं। साथ ही उन्होंने केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होने के संकेत भी दे दिए हैं। सरकार को घेरने में उन्हें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष शरद यादव का भी साथ मिल सकता है। ज्ञात हो कि यादव तिकड़ी 15वीं लोकसभा में विभिन्न मुद्दों पर एकजुट रही है और सरकार के खिलाफ एक दबाव समूह के रूप में काम कर रही है।

0 comments:
एक टिप्पणी भेजें