आधुनिक हिन्दी कथा जगत के युगपुरूष प्रेमचंद
अनिता महेचा
हिन्दी साहित्य के आधुनिक साहित्यकारों में प्रेमचंद जी का स्थान शीर्षस्थ हैं। वे हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कथाकार एवं उपन्यास समा्रट माने जाते है। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी गद्य के निर्माता भी हैं और उसके सर्वोतकृष्ट प्रतिनिधि भी हैं। जब उन्हांेने लिखना प्रारम्भ किया तो उस समय हिन्दी का कथा साहित्य प्रारम्भिक अवस्था में था । उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर साहित्य का संबंध जन-जीवन से स्थापित किया और मानव जीवन की विविध स्थितियों को कहानियों के विषय के रूप में चुना । राष्ट्रीय चेतना ,समाज सुधार, पारिवारिक जीवन, देष की सामाजिक ,राजनैतिकर्, आिर्थक एवं विभिन्न समस्याओं को लेकर उन्होंने कहानियाॅ रची । इन सभी विषेषताओं से प्रेमचंद जन-जन के प्रिय कहानिकार एवं उपन्यासकार माने जाते है।
प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 में बनारस के पास लम्ही नामक गांव में हुआ था । इनका बचपन का नाम धनपतराय था , लेकिन घर में आपको नवाबराय नाम से पुकारा जाता था । छोटी उम्र में शादी होने तथा पिता का देहान्त होने से मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्हें बनारस में अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी बाद में नौकरी करते हुए उन्होंने बी.ए. तक पढाई की तथा सरकारी सेवा में अपनी योग्यता के बल पर वे डिप्टी इन्सपेक्टर बन गये थे । लेकिन तभी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्हांेने 20 साल की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और स्वतन्त्र रूप से सहित्य सृजन करते रहे । गांधीवाद और स्वतन्त्रता आंदोलन के अनेक चित्र इनकी कहानियों में प्राप्त होते हैं। आपने कथा साहित्य द्वारा श्रेष्ठ जीवन मूल्येां को पूरा समर्थक प्रदान किया । आपका सन् 1936 में देवावसान हो गया ।
प्रेमचंदजी सर्वप्रथम नवाबराय के नाम से उर्दू में कहानियाॅं लिखा करते थें । उनका उर्दू में लिखा ‘सोजेवतन‘ नामक कहानी संग्रह अग्रेंज सरकार ने जब्त कर लिया था । तब से वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगें। उनकी पहली कहानी ‘संसार का अनमोल रत्न‘ सन् 1907 में जमाना में प्रकाषित हुई थी ।
पे्रमचंद जी की प्रारम्भिक कहानियाॅं जो सन् 1917 से 1920 के दरम्यान लिखी गई, इसमें सुदीर्घ कथानक एवं घटनाओं का अत्यधिक विस्तार प्राप्त होता है। इनका कहानियों में आदर्षवाद में थोपा हुआ प्रतीत होता हैं । इन कहानियों में ‘सुजान भगत‘ ‘बड़े घर की बेटी‘ ‘पंच-परमेष्वर‘ ‘शराब की दुकान‘ ‘नमक का दारोगा‘ जैसी कहानियां इसी कोटि के अन्तर्गत आती है।
सन् 1921 से 1930 के मध्य लिखी इनकी कहानियों में कला की दृष्टि से अत्यधिक परिपक्वता आई । इस दौरान लिखी गई कहानियों में उन्होंने आरोपित आदर्षवाद को त्यागकर यथार्थवाद को अपनाया लेकिन आदर्ष का कुछ प्रभाव अभी भी उनकी कहानियों में विद्यमान था । इस काल में लिखी गई कहानिंयों में ‘शतरंज के खिलाड़ी‘ ‘ईदगाह‘ ‘माता का हद्य‘ ‘परीक्षा‘ ‘आसुओं की होली‘ ‘पण्डित मोटाराम शास्त्री‘ ‘षांति‘ जैसी कहानियों में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
सन् 1931 से 1936 तक लिखी गई उनकी कहानियाॅं आदर्षवाद से पूर्ण रूप से मुक्त होकर यथार्थ की ओर उन्मुख हो गई थी । इन कहानियों में मानव मनौविज्ञान का सुक्ष्म चित्रण किया गया है। जैसे ‘कफन‘, ‘मंत्र‘, ‘पूस की रात‘, ‘नषा‘, ‘मिस-पद्मा‘, इसी दौरान लिखी गई बेहद महत्वपूर्ण कहानियाॅं है। इन कहानियों के अन्तर्गत उनकी कथा चेतना अपनी सम्पूर्ण सर्वोतकृष्टता के रूप मेे उजागर होती है।
प्रेमचंद जी ने ऐसे साहित्य का सृजन किया जो उदात मानवीय भावनाओं और मूल्यों के कारण अजर-अमर हैं । उन्हांेने 300 के आसपास कहानियाॅ लिखी जो ‘मानसरोवर‘ नाम से 8 भागो में सरस्वती प्रेस से प्रकाषित हो चुकी है। उन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यासांे की रचना की । ‘प्रतिज्ञा‘, ‘वरदान‘, ‘सेवासदन‘ ,‘निर्मला‘, ‘गबन‘ ,‘प्रेमाश्रम‘ ,‘रंगभूमि‘, ‘कायाकल्प‘, ‘गोदान‘, ‘रूठीरानी‘ और ‘मंगलसूत्र‘ (अपूर्ण) आदि प्रमुख है।
हिन्दी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम नहीं माना जा सकता । प्रेमचंदजी ने कहानी व उपन्यास को कौरी कल्पना और रूमानियत के धंुधलके से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया । उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नई पहचान दी । जीवन के अनेक रंगो के अनुभूतिपरक चित्र इनकी कहानियों की विषेषता है। उन्होंने कहानी को घटना के स्थान पर उसे चारित्रिक आयाम प्रदान किया और वायवी परिवेष के स्थानपर जीवन के यथार्थ को उद्घाटित किया । ऐसा करने के कारण ही प्रेमचंद लाखों लोगों के चहेत और प्रिय लेखक बन सकें । इसी वजह से उनकी तलना रूस के गोर्की व चीन के लुसुग से की जाती हैं ।
प्रेमचंदजी ने ‘जागरण‘, ‘मर्यादा‘, ‘माघुरी‘, ‘हंस‘ का सम्पादन भी किया । उन्होंने ‘प्रेम की बेदी‘ , ‘करबला‘, और ‘संग्राम‘ जैसे नाटक भी लिखें । तथा ‘कुछ विचार‘ एवं ‘विविधि प्रंसग‘ में इनके निंबंध संग्रहित है। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी साहित्य के युग पुरूष माने जाते हैं उन्हांेने अपने युग के समाज ,धर्म और राजनीति के अनुभवों को अपनी लेखनी के द्वारा संजोया था । जीवन के तमाम जीवंत अनुभव उनकी रचनाओं में साकार रूप्रा में देखे जा सकते है। इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियाॅं इतनी प्रभावषाली हैं कि पुरानी होकर भी उनके कथानक ,उनकी रचना प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेषा ताजगी भरे लगते है। उनकी प्रत्येक रचना में यथार्थ जीवन की धड़कनें है और इसी कारण उन्हंे बार-बार पढ़ने पर भी मन उकताता नहीं । यह बात नहीं कि उन्होने अपनी रचनाओं को कोरे यथार्थ से ही सजाया हैं बल्कि उनमें जीवन के व्यवहारिक आदर्षो की कल्पना भी मिलती है और उस जीवन की स्पष्ट झलक भी जेसा वह जीवन-समाज देखना चाहते थे । प्रेमचंद अपनी रचनाओं मे आज भी जिंदा है और हमेषा जिंदा रहेगें । विष्व के अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है।
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