विधानसभा से लोकसभा तक बाड़मेर की जनता का बड़ा योगदान, फिर भी नही हैं महारानी मेहरबान ??

दुर्गसिंह राजपुरोहित 

बाड़मेर। 
शांत कहे जाने वाला बाड़मेर ज़िला राजनीति के लिहाज से अशांत हो चला है।  कोई अर्थपूर्ण राजनीति नही सिर्फ जातिवाद और अर्थवाद। जातिवाद का अर्थ ज्यादा जटिल नही। लेकिन अर्थवाद का अर्थ समझाना जरुरी हैं। अर्थवाद जब जननेताओं की हसरत बन जाये तो थोड़ी दिक्कत होती है। मैं पत्रकार हूँ और अगर मैं अर्थवादी हो जाऊंगा तो यह निश्चित हैं कि मैं जनता के मुद्दे नही उठा सकता। लेकिन जब तक मैं सिर्फ पत्रकार हूँ किसी नेता की इतनी हिमाकत नही कि मेरे लक्ष्य को वो डिगा सके।
ख़ैर , हम बाड़मेर की बात कर रहे थे। बाड़मेर में इन दिनों राजनीति के अभेद्य समझे जा रहे चक्रव्यूह की बात पर चर्चाएं जोरो पर हैं। लोग हर गली चौराहे पर , सड़क से शायद संसद और विधानसभा तक यही सोच रहे हैं कि मेवाराम जैन और कर्नल की लड़ाई में जीतेगा कौन ?
वैसे , कर्नल सोनाराम पर भड़ास निकालने में डॉक्टरेट की उपाधि हैं। वृद्धिचंद जैन से हाथापाई जैसी नौबत आने की बात हो या अशोक गहलोत, हेमाराम चौधरी , हरीश चौधरी , मदन प्रजापत से वाकयुद्ध में सीमाओं के पार तक जाना हो। हर मामले में विवादित किसान नेता कहे जाने वाले कर्नल किसी से नहीं चूकते पत्रकारों से लगाकर सरकारी अफसरों तक भिड़ना इनकी फितरत का हिस्सा रही हैं। यही नही सांसद छात्र संघ चुनावो में तत्कालीन एसपी हेमन्त शर्मा और कोतवाल रहे कैलाश मीणा के खिलाफ मौर्चा खोल चुके हैं लेकिन सफलता उनके पास नही पहुंची और कई महीने बाद रूटीन ट्रांसफर से ही ये अधिकारी स्थानांतरित हुए।
दूसरी तरफ मेवाराम जैन हैं। राजनीति के मैदान के धुरंधर। आजतक कभी कोई शॉट खाली नही गया। बालेबा की सरपंचाई से शुरू होकर दो बार विधायक रहे मेवाराम जैन को विधानसभा चुनाव से नगर परिषद और पंचायत समिति जिला परिषद चुनाव में पटखनी देने के खूब प्रयास बीजेपी नेताओं ने किये। मसलन , डॉ प्रियंका चौधरी , डॉ जालमसिंह रावलोत और लोकसभा चुनाव के बाद कर्नल सोनाराम खुद कई बड़े बड़े उद्यमियों के साथ ने भी मेवाराम को डिगाया नही।
लेकिन इस बार का मुकदमा ट्रिक जयपुर से लगाकर बाड़मेर तक चर्चा का विषय हैं। जितने मुंह उतनी बातें । कोई कह रहा हैं कि राज्यसभा चुनाव इस कार्रवाई में बूस्टर बना कोई कह रहा हैं कि कर्नल ने महारानी को इसमें काफी प्रयासों से मेवाराम को निपटाने के लिए ताना बाना गूंथा ।
वैसे , निपटाने में महारानी सिद्धहस्त हैं। जसवंत सिंह , घनश्याम तिवाड़ी समेत बड़े “खपीड़” नेता भी महारानी के निशाने पर आने के बाद आज राजनीतिक किताब का इतिहास बन गए हैं।
इस पूरी लिखा पढ़ी का हिसाब यही हैं कि बड़े बड़े राजनीतिक “टाईगर फाइट” में जनता ने क्या कमाया या क्या गंवाया ? नगरपरिषद के कार्मिक जेल गए , बाकि बचे उनपर ताज़ातरीन एक दम फ्रेश मुकदमा हुआ तो कार्मिक धरने पर बैठ गये कि बीजेपी कांग्रेस की अहम की लड़ाई में कार्मिको को घुन की तरह क्यों पीसा जा रहा हैं।
लेकिन कोई कार्मिको की सुनने वाला नही। यूआईटी चेयरपर्सन और बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता से कार्मिको की मुलाक़ात और मुकदमे से बचाव की याचना भी कोई काम आई नही। अब जनता कहाँ जाये ? धरने का तीसरा दिन हैं। लूणकरण बोथरा के सभापति कार्यकाल के दो साल बीतने ही वाले हैं और सबसे कमजोर कार्यकाल का ठप्पा इन दो सालों में लग ही चुका हैं। ऐसे में सभापति को इसका दोष देना भी जल्दबाज़ी इसीलिए हैं कि उनकी पारी जब नगरपरिषद में शुरू हुई तो उजड़ी सियासत का बादशाह उन्हें बनाया गया। कुछ प्रयास होते इससे पहले मुकदमे , पुलिस जांच , जेल का दौर-ए-आगाज़ मुंह बाये खड़ा था।
ऊपर से कई पार्षदों की ठेकेदारी इस सभापति ने बिगाड़ दी। कई लोग कांग्रेस में आये तो यह सोच कर थे कि बड़ा हाथ मार डालेंगे लेकिन बदकिस्मती यह रही कि लूणकरण बोथरा ने इन दो चार से थोड़े ज्यादा संख्या वाले पार्षदों की ठेकेदारी के “ठिबड़े” में चारा नही पड़ने दिया और नतीजा सबके सामने हैं आये दिन साज़िशों की बिसात कुछ पार्षद एसी कमरे में बिछा रहे हैं। ऐसे में नगरपरिषद के हाल बुरे हो चले हैं और जनता छाती पीटने को मजबूर हैं कि लोकतंत्र में क्या यही नतीजा जनता भुगतती हैं ?

मुख्यमंत्री से बाड़मेर जनता की अपील

बाड़मेर की जनता ने सुराज संकल्प को सजाकर वोट मांगने पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जमकर महारानी को वोट दिये । सात में से 6 विधायक महारानी के हिस्से आये और मोदी के मिशन 272+ में भी हिस्सेदारी बाड़मेर ने निभाई । यह जनता यह उम्मीद करती हैं कि मैडम भले ही किसी के कार्यकाल की जांच करवाएं , अगर भ्रष्ट कार्मिक हो तो जेल भिजवाये लेकिन 2 साल से सूने पड़े नगरपरिषद की वैकल्पिक व्यवस्थाओं को चलाने के लिए कार्मिको की व्यवस्था तो करवाएं। वरना , मैडम जनता भूलती नही हैं किसी को। किसी को भी नही।

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