आत्म कल्याण के लिये स्व और पर दोनों को पहचानना होगा- साध्वी सुरंजनाश्री
बाड़मेर।
स्थानीय जिनकांतिसूरी आराधना भवन में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए विचक्षण मणि, सौम्य मूर्ति, शांत स्वभावी गुरूवर्या श्री सुरंजनाश्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी वर्या सिद्धांजनाश्री ने कहा कि जहां आत्मा का विचार सतत् चलता रहता था। यह हमारा आर्य देश है लेकिन आज आत्मा को लगभग भुला दिया गया है। देह के सुख की अत्यधिक चिंता है और आत्मा का विचार भी नहीं करते। जो शरीर यहां पड़ा रहने वाला है उसके सुख के लिए रात-दिन मेहनत करते हैं। यह कैसी दशा है? आत्मा अजर अमर है या शरीर? आत्मा अमर है, देह नाशवंत है। फिर भी नाशवंत के पागलपन में आत्मा का क्या होगा, यह चिंता ही भुला दी गई है।
सच तो यह है कि आपको अपना क्या और पराया क्या, उसका ख्याल ही नहीं है। जो पराया है उसे अपना मान कर भान भूले हैं। आत्मा अपनी होने पर भी उसकी लेश भी चिंता नहीं है। धन कमाने के लिये व्यक्ति अपनी जन्मभूमि छोड़कर कहां-कहां जाते हैं परन्तु आत्मशुद्धि के लिए एक बार भी अपना घर छोड़कर नहीं गये।
साध्वीश्री ने कहा कि दैहिक सुख आपको पसंद है इसलिये आप सोचते हैं कि गांव में घर चाहिए, घर में रसोई, दुकान, स्कूल, अस्पताल चाहिए। परन्तु आत्मा के लिए जिन मंदिर, उपाश्रय, पाठशाला आदि चाहिये। हमने श्रावकपन पा लिया, पर अगर हमारे जीवन में त्याग, व्रत, पच्चक्खाण नहीं किया तो हमारी आत्मा का क्या होगा? हमें जीवन में पानी से पहले पाल बांधनी है। हम यह नहीं कहते कि त्याग करो, लेकिन हम कहते हैं कि छूट रखो। जितनी चाहे उतनी पर उसके बाद जीवन में कुछ त्याग, व्रत, नियम अपनाओ। हमें छोड़ना कुछ नहीं है। बस नियम में आना है तभी हमारी आत्मा का कल्याण संभव है। आत्मा के लिये कुदेव, कुगुरू और कुधर्म को छोड़कर सुदेव, सुगुरू और सुधर्म को अपनाना है।
आत्म कल्याण के लिये स्व और पर दोनों को पहचानना होगा, इन्द्रियों पर नियंत्रण रखो और उसका अभ्यास करो और ज्ञानियों की आज्ञानुसार आचरण करने के लिये प्रयत्नशील बनो। इससे आपकी आत्मा का कल्याण होगा और क्रमशः शाश्वत सुख का धाम ‘मोक्ष’ प्राप्त होगा।
खरतरगच्छ जैन श्री संघ के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा ने बताया कि आराधना भवन में प्रतिदिन प्रातः 9.30 से 10.30 बजे तक विशेष प्रवचन हो रहे हैं।
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